Book Title: Agam Sutra Satik 05 Bhagavati AngSutra 05
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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शतकं - ३३, वर्ग: ५, उद्देशक:
४७९
भवसिद्धियअपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयाणं भते ! कति कम्मप्पगडीओ प० ?, एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमिल्लगं एगिंदियसयं तहेव भवसिद्धियसयपि भाणियव्वं, उद्देसगपरिवाडी तहेव जाव अचरिमोत्ति । सेवं भंते ! २त्ति ।
-: शतकं - ३३ - षष्ठं शतकं :
मू. (१०२६) कइविहा णं भंते! कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिंदिया प० ?, गोयमा ! पंचविहा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिंदिया प०, पुढविकाइया जाव वणरसइकाइया ।
कण्हलेस्सभवसिद्धीयपुढविकाइया णं भंते! कतिविहा प० ?, गोयमा ! दुविहा प० तं०- सुहुमपुढविकाइया य बायरपुढविकाइया य, कण्हलेस्सभवसिद्धीयसुहुमपुढविकाइयाणं भंते! कइविहा प० ?, गोयमा ! दुविहा पं० तंजहा- पचत्तगा य अपजत्तगा य, एवं बायरावि, एएणं अभिलावेणं तहेव चउक्कओ भेदो भा० ।
कण्हलेस्सभवसिद्धीयअपचत । सुहुमपुढविकाइया णं भंते! कइ क्मप्पगडीओ प०, एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसए तहेव जाव वेदेति । कइविहा णं भंते! अनतरोवन्नगा कण्हलेस्साभवसिद्धिया एगिंदिया प० ?, गोयमा ! पंचविहा अनंतरोववन्नगा जाव वणरसइकाइया अनंतरोववन्नगकण्हलेस्स भवसिद्धियपुढविकाइया णं भंते! कतिविहा प० ?, गोयमा ! दुविहा प० तं०- सुहुमपुढविका० एवं दुयओ भेदो । अनंतरोववन्नगकण्हलेस्सभवसिद्धियसुहुमपुढविकाइयाणं भंते! कइ कम्मपगडीओ प० ?, एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिओ अनंतरोववन्न उद्देसओ तहेव जाव वेदेति । एवं एएणं अभिलावेणं एक्कारसवि उद्देसगा तहेव भाणियव्वा जहा ओहियसए जाव अचरिमोत्ति ।।
-: शतकं - ३३ - सप्तमंशतकं:
मू. (१०२७) जहा कण्हलेस्स भवसिद्धिएहिं सयं भणियं एवं नीललेस्सभवसिद्धिएहिवि सयं भाणियव्वं ॥ सत्तमं एगिंदियसयं सम्मत्तं ।
-: शतकं - ३३ - अष्टमं शतकं:
मू. (१०२८) एवं काउलेस्सभवसिद्धीएहिवि सयं ॥ -: शतकं - ३३ - नवमं शतकं :
भू. (१०२९) कइविहा णं भंते! अभवसिद्धीया एगिंदिया प० ?, गोयमा ! पंचविहा अभवसिद्धिय० पं० तं०-पुढविक्काइया जाव वणरसइकाइया एवं जहेव भवसिद्धीयसयं भणियं नवरं नव उद्देसगा चरम अचरमउद्देसगवज्जा सेसं तहेव ॥
-: शतकं - ३३ - दशमं शतकं:
मू. (१०३०) एवं कण्हलेस्सअभवसिद्धीयएगिंदियसयपि ॥ -: शतकं - ३३ - एकादशमं शतकं:
मू. (१०३१) नीललेस्सअभवसिद्धीयएगिदिएहिवि सयं ।
-: शतकं - ३३ - द्वादशमं शतकं :
मू. (१०३२) काउलेस्सअभवसिद्धीयसयं, एवं चत्तारिवि अभवसिद्धीयसयाणि नव २ उद्देगा भवंति, एवं एयाणि बारस एगिंदियसयाणि भवंति ॥
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