Book Title: Agam Sutra Satik 05 Bhagavati AngSutra 05
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 1026
________________ शतकं - २६, वर्ग:-, उद्देशक:- ९ ४५९ -: शतकं - २६ उद्देशकः - ९: मू. (९८८) परंपरपजत्तए णं भंते! नेरइए पावं कम्पं किं बंधी ? पुच्छा, गोयमा ! एवं जहेव परंपरोववत्रएहिं उद्देसो तहेव निरवसेसो भाणियव्वो । सेवं ! २ जाव विहरइ । -: शतकं - २६ उद्देशकः - १० : - - मू. (९८९) चरिमे णं भंते! नेरइए पावं कम्पं किं बंधी ? पुच्छा, गोयमा ! एवं जहेव परंपरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव चरिमेहिं निरवसेसो । सेवं भंते! २ जाव विहरति । वृ. तथा - 'चरमेणंभंते! नेरइए' ति, इह चरमोयः पुनस्तं भवं न प्राप्स्यति, 'एवं जहेवे' त्यादि, इह च यद्यप्यविशेषेणातिदेशः कृतस्तथाऽपि विशेषोऽवगन्तव्यः । -: शतकं - २६ उद्देशकः-११: पू. (९९०) अचरिमे णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी ? पुच्छा, गोयमा ! अत्येगइए एवं जहेव पढमोसए पढमबितिया भंगा भाणियव्वा सव्वत्य जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं अवरिमे णं भंते! मणुस्से पावं कम्मं किं बंधी ? पुच्छा, गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी बंधइ fures अत्थे बंधी बंधइ न बंधिस्सइ अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ । सलेस्से णं भंते! अचरिमे मणूसे पावं कम् किं बंधी ?, एवं चेव तिन्नि भंगा चरमविहूणा भाणियव्वा एवं जहेव पढमुद्देसे, नवरं जेसु तत्थ वीससु चत्तारि भंगा तेसु इह आदिल्ला तिनि भंगा भाणियव्या चरिमभंगवज्जा, अलेस्से केवलनाणी य अजोगीय एए तिनिवि न पुच्छिज्जति, सेसं तहेव, वाणमंतरजोइ० वेमा० जहा नेरइए । अचरिमे णं भंते! नेरइए नाणावरणिज्जं कम्मं किं बंधी पुच्छा, गोयमा ! एवं जहेव पावं नवरं मणुस्सेसु सकसाईसु लोभकसाईसु य पढमबितिया भंगा सेसा अट्ठारस चरमविहूणा सेसं तहेव जाव वेमाणियाणं, दरिसणावरणिज्जंपि एवं चैव निरवसेसं, वेयणिज्जे सव्वत्थवि पढमबितिया भंगा जाव वेमाणियामं नवरं मणुस्सेसु अलेस्से केवली अजोगी य नत्थि । अचरिमे णं भंते ! नेरइए मोहणिज्जं कम्मं किं बंधी ? पुच्छा, गोयमा ! जहेव पावं तहेव निरवसेसं जाव वेमाणिए । अचरिमे णं भंते! नेरइए आउयं कम्पं किं बंधी ? पुच्छा, गोयमा ! पढबितिया भंगा, एवं सव्यपदेसुवि, नेरइयाणं पढमततिया भंगा नवरं सम्मामिच्छत्ते ततिओ भंगो, एवं जाव थणियकुमाराणं । पुढविवाइय आउकाइयवणस्सइकाइयाणं तेउलेस्साए ततिओ भंगो सेसेसु पदेसु सव्वत्थ पढमततिया भंगा, तेउकाइयवाउक्वइयाणं सव्वत्थ पढमततिया भंगा, बेइंदियतेइंदियचउ० एवं चेव नवरं सम्मत्ते ओहिनाणे आभिनिबोहियनाणे सुयनाणे एएस चउसुवि ठाणेसु ततिओ भंगो, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं सम्मामिच्छत्ते ततिओ भंगो, सेसेसु पदेसु सव्वत्य पढमततिया भंगा मस्साणं सम्मामिच्छत्ते अवेदए अकसाइम्मिय ततिओ भंगो, अलेस्स केवलनाण अजोगी य न पुच्छिज्जति, सेसपदेसु सव्वत्थ पढमततिया भंगा, वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा नेरइया नामं गोयं अंतराइयं च जहेव नानावरणिजं तहेव निरवसेसं । सेवं भंते ! २ जाव विहरइ ।। वृ. तथाहि - चरमोद्देशकः परम्परोद्देशकवद्वाच्य इत्युक्तं, परम्परोद्देशकश्च प्रथमोद्देशकवत्, तत्र च मनुष्यपदे आयुष्कापेक्षया सामान्यतश्चत्वारो भङ्गा उक्ताः, तेषु च चरममनुष्यस्यायुष्क Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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