Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 13
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ बामदुराज्ययनरत्रम् / अध्ययनं 25] [1 उद्धत्त(तु)मणहारिणो) // 11 // अजाणगा जनवाई, विजामाहणसंपया। मू(पू)डा सम्झायतवसा(स्स), भासच्छन्ना इवग्गिणो // 18 ॥जो लोए बम्भाणो वुत्तो, अग्गी वा महियो जहा। सदा कुसलसंदिटुं, तं वयं बूम माहणं // 11 // जो न सजइ आगन्तु, पवयन्तो न सोयई। रमए अजवयणमि, तं वयं ब्रूम माहणं // 20 // जायख्वं ज(म)हा मट्ठ, निद्धंतमलयावगं / रागद्दोसभयाईयं, तं वयं बूम माहणं // 21 // तवस्सियं किस दन्तं, अवचिय-पंसमोणियं / सुव्वयं पत्तनिव्वाणं, तं वयं बूम माहणं // 22 // तसेपाणे वियाणित्ता , संगहेण य (म-) थावरे। जो न हिंसइ तिविहेणं, तं वयं बूम माहणं // 23 // कोहा वा जवा हासा, लोहा वा जइवा भया। मुसं न वयई जो उ, तं वयं बूम माहणं // 24 // चित्तमन्तमचित्तं वा, अप्पं वा जइबा पहुं / न गिराहइ श्रदत्तं जो, तं वयं ब्रूम माहणं // 25 // दिव्वमाणुस्स-तेरिच्छं, जो न सेवेइ मेहुणं / मणसा कायवक्केणं, तं वयं बम माहणं // 26 // जहा पोमं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा / एवं थलितं कामेहि, तं वयं बूम माहणं // 27 // अलोलुयं मुहाजीविं, अणगारं अकिंचणं / असंसत्तं गिहत्थेहि, तं वयं ब्रूम माहणं // 28 // जहित्ता पुषसंजोगं, णाइसंगे य बंधवे / जो न सज्जइ भोएहि, तं वयं बूम बंभणं // 26 // पसुबन्धा(बद्धा) सव्ववेया, जटुंच पावकम्मुणा / न तं तायन्ति दुस्मीलं, कम्माणि बलवन्तिह // 30 // नवि मुडिएण समणो, न ओंकारेण बम्भणो, न मुणी रगणवासेणं, कुसचीरेण न तावसो // 31 // समयाए समणो होइ, बम्भचरेण बम्भणो। नाणेण य मुणी होई, तवेणं होइ तावसो // 32 // कम्मुणा बम्भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तियो। वइस्सो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुणा // 33 // एए पाउकरे बुद्धे (पाउकरा धम्मा), जेहिं होइ सिणाययो / सव्वकम्म-विणिम्मुक्क, तं वयं बूम माहणं // 34 // एवं गुणसमाउत्ता, जे हवन्ति दिउत्तमा। ते समत्था उ उद्धत्तु, परं श्रप्पाणमेव

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