Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 13
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 181
________________ [ श्रीमंदागरवासि त्रयोदशमे विभागः हिपत्तं च निवत्तेइ, दुल्लहयोहियत्तं निजरेइ // 57 // कायसमाधारणयाए णं भन्ते ! जीवे कि जणेइ ? काम-समाधारणयाए णं चरित्तपजवे विसोहेइ चरित्ताजवे विसोहित्ता अहवखायचरित्तं विसोहेइ, श्रहक्खायचरित्तं विसोहित्ता चत्तारि केवलि कम्मसे खवेइ, तयो पच्छा मिज्झइ बुज्झइ मुबइ परिनिव्वा. यइ सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ // 58 // नाममपन्नयाए णं भन्ते ! जीवे कि जणयई ? नाणसंपन्नयाए णं सव्वभावाभिगमं जणेइ, नाणसंपन्ने णं जीवे चाउरन्ते संसारकन्तारे न विगास्सई,-जहा सूई ससुत्ता, पडिया न विणस्सई / तहा जीवे ससुत्ते, संसारे न विणस्सई / 1 // नाणविणय-तवचरित्तजोगे संपाउणइ, सप्तमय-परसमय-विसारए असंघायणिज्जे भइ // 51 // दंसणसंपन्नयाए णं भन्ते ! जावे किं जगइ ? दंसणसंपन्नयार ण भवमिच्च. त्तयणं करेइ, परं न विज्भायड, अणुत्तरेण नाणदंसणेण अप्पाणं संजोएमाणे सम्म भावमाणे (अणुत्तरेणं नाणदसणेणं) विहरइ // 60 // चरित्तसंपन्नाए णं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? चरित्तसंपन्नयाए | सेलेसीभावं जरो इ, सेलेसि पडिवन्ने अणगारे चत्तारि कम्मसे खवेइ, त्यो पच्छ सिज्मा बुज्मः जाव अन्तं करेइ // 61 // सोइन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे कि जरोइ ? सोइन्दियनिग्गहेणं मणुन्नामणुन्नेसु सद्दे सु रागदोसनिग्गहं जोइ, तप्पच्चइयं च णं कम्मं न बन्धइ पुबवद्धं च निजरेइ // 62 // चक्खिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? चक्खिन्दियनिग्गहेणं मणुनामणुन्नेसु रूवेसु रागहोसनिग्गहं जोइ, तप्पञ्चइयं च णं कम्मं न बन्धइ पुव्वबद्धं च निजरेइ // 63 // घाणिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? घाणिन्द्रियनिग्गहेणं मणुन्नामणुन्नेसु गन्धेसु रागहोप्तनिग्गहं जणेइ, तप्पच्चइयं च णं कम्मं न बन्धइ पुत्वबद्धं च निजरेइ // 64 // जिभिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किं जणेइ ? जिन्भिन्दिय-निग्गहेणं मणुनामणुन्नेसु रसेसु रागदोसनिग्गहं जोइ, तप्पच्चइयं च णं कम्मं न बन्धइ पुत्वबद्धं च निजरेइ // 65 // फासिन्दियनि

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