Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 13
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ ( श्रीमदागमसुधासिन्युः त्रयोदशमो विभागः जीवे सिझत्ति) // 72 // तो ओरालिय-कम्माई च सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहित्ता उज्जुसेटीपत्ते अफुसमाणगई उड्ढ एगसमएणं अविग्गहेणं तत्थ गन्ता सागारोवउत्ते सिज्मइ बुभइ जाव अन्तं करेइ // 73 // एसे खलु सम्मत्तपरकमस्स अज्मरणस्स अट्ठ समोणं भगवया महावीरेणं श्राघविए पनविए परूविए दंसिए निर्देसिए उवदंसिए // त्ति बेमि / / // इति एकोनविंशमध्ययनम् // 29 // // 30 // अथ तपोमार्गगतिनामकं त्रिंशमध्ययनम // जहा उ पावगं कम्म, रागद्दोस-समजियं / खवेइ तवसा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुण॥ 1 // पाणिवहमुसावाया, श्रदत्तमेहुणपरिग्गहा विरयो / राईभोयणविरो, जीवो भवइ अणासवो // 2 // पंचममियो तिगुत्तो, अकसायो जिइंदियो। अगारयो अनिस्सल्लो, जीवो भवइ अणासवो // 3 // एपसिं तु विवजासे, रागदोस-समजियं / खवेइ तं जहा भिक्खू, तं मे एगमणो सुण / / 4 / / जहा महातलागस्स, संनिरुद्धे जलागमे / उस्सिंत्रणाए तवणाए, कमेणं सोसणा भवे // 5 // एवं तु संजयस्सावि, पावकम्मनिरासवे / भाकोडीसंचियं कम्म, तवसा निजरिजई // 6 // सो तवो दुविहो वुत्तो, बाहिरभंतरो तहा। बाहिरो छबिहो दुत्तो, एवमभितरो तवो // 7 // अणसणमूगोअरिया, भिक्खायरिया य रसपरिचायो / कायकिलेसो संलीणया य बज्भो तवो होइ // 8 // इत्तरियमरणकाला य, अगसणा दुविहा भवे / इत्तरिया सावकंखा, निरवकंखा उ बिइजिया // 1 // जो सो इत्तरियतबो, सो समासेण छविहो / सेढितको पयरतवो, घणणे य तह होइ वग्गो य॥ 10 // तत्तो य वग्गवग्गो उ, पंचमो छट्टयो पइराणतवो / मणइच्छियचित्तत्थो, नायवो होइ इत्तरिश्रो॥ 11 // जा सा अणसणा मरणे, दुविहा सा वियाहिया। सवियारमवियारा, कायचिट्ठ पई भवे // 12 // अहवा

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