Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 13
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 201
________________ 11] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागः नत्थि जोइसमे सत्थे, तम्हा जोई न दीवए // 12 // हिरगणं जायस्वं च, मणसावि न पत्थए / समलिट्ठ-कंचणे, भिक्खू, विरए कयविक्कए // 13 // किान्तो कइयो होइ, विकिणन्तो अवाणियो / कयविक्कयम्मि वट्टन्तो, भिक्खू हवइ तारिसो॥ 14 // भिक्खियव्वं न केयव्वं, भिक्खुणा भिक्खवित्तिणा / कयविक्कयो महादोसो, भिक्खावित्ती सुहावहा // 15 // समुयाणं उंछमेसिजा, जहासुत्तमणिन्दियं / लाभालाभम्मि संतु?, पिराडवायं चरे मुणी // 16 // अलोलो न रसे गिद्धो, जिब्भादन्तो अमुच्छियो। न रसाए भुजिजा, जवणट्ठाए महामुणी // 17 // अञ्चणं रयणं चेव, वन्दणं पूअणं तहा। इड्डीसकार-सम्माणं, मणसावि न पत्थए // 18 // सुक्कं झाणं झियाइजा, अणियाणे अकिंचणे / वोसट्टकाए विहरिजा, जाव कालस्स पजयो // 11 // निज्जूहिऊण श्राहारं, कालधम्मे उवट्ठिए / चऊण माणुसं बुदि, पहू दुक्खा विमुचई // 20 // निम्ममो निरहंकारो, वीयरायो अणासवो / संपत्तो केवलं नाणं, सासयं परिनिव्वुडे // 21 // त्ति बेमि // // इति पंचत्रिंशमध्ययनम् // 35 // // 36 // अथ जीवाजीविभविक्तनामक पत्रिंशमध्ययनम् // __जीवाजीवविभत्ति, मे सुणेहे-गमणा इयो / जं जाणि.ऊण भिवखु, सम्मं जयइ संजमे // 1 // जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए। अजीव देसमागासे, अलोए से वियाहिए // 2 // दव्वो खित्तयो चेव, कालयो भावथो तहा / परूवणा तेसि भवे, जीवाणमजीवाण य॥३॥ रूविणो वऽस्वी य, अजीवा दुविहा भवे / अरूवी दसहा वुत्ता, रूविणोऽवि चउनिहा // 4 // धम्पत्थिकाए तब से, तप्पएसे य पाहिए / अधम्मे तस्स देसे य, तप्पएसे य श्राहिए // 5 // यागासे तस्स देसे य, तप्पएसे य

Loading...

Page Navigation
1 ... 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218