Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 13
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 196 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः त्रयोदशमो विभागा. // 202 // देवा चउबिहा वुत्ता, ते मे कित्तयत्रो सुण / भोमिज वाणमंतर जोइस वेमाणिया तहा // 203 // दसहा उ भवणवासी, अट्टहा वणचारिणो। पंचविहा जोइसिया, दुविहा वेमाणिया तहा // 204 // श्रसुरा नागसुवराणा, विज्जू अग्गी अग्राहिया। दीवोदही दिसा वाया, थणिया भवणवासिणो // 205 // पिसाय भूय जक्खा य, रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा। महोरगा य गंध-वा, अट्ठविहा वाणमंतरा // 206 // चंदा सूरा य नक्खत्ता, गहा तारागणा तहा। दिसाविचारिणो चेव, पंचहा जोइसालया // 207 // वेमाणिया उ जे देवा, दुविहा ते पकित्तिया / कप्पोरगा य बोद्भवा, कप्पाईया तहेव य // 208 // कप्पोवगा बारसहा, सोह मीसाणगा तहा। सणंकुमार माहिंदा, वम्भलोगा य लंतगा // 201 // महासुका सहस्सारा, याणया पाणया तहा। श्रारणा अच्चुया चेव, इइ कप्पोवगा सुरा / 210 // कप्पाइया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया / गेविजगा णुत्तरा चेव, गेविजा नवविहा तहिं // 211 // हिटिमा हिट्ठिमा चेव, हिटिमा-मज्झिमा तहा / हिट्ठिमा-उवरिमा चेव, मज्झिमा-हिटिमा तहा // 212 // मज्झिमा-मज्झिमा चेव, मज्झिमा- उवरिमा तहा। उवरिमाहिटिमा चेव, उवरिमा-मज्झिमा तहा // 213 // उवरिमा-उवरिमा चेव, इइ गेविजगा सुरा / विजया वेजयन्ता य, जयन्ता अप्पराजिया / / 214 // सव्वत्थसिद्धगा फेव, पंचहाऽणुत्तरा सुरा। इइ वेमाणिया एए, गहा एव. माययो // 215 // लोगस्स एगदेसम्मि, ते सव्वे परिकित्तिया / इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउब्विहं // 216 // संतई पप्पऽणाईया, अपजवसियावि य। ठिपडुच्च साईया, सपजवसियावि य // 217 // साहीयं सागरं इक्कं, उक्कोसेण ठिई भवे / भोमिजाण जहन्नेणं, दसवास-सहस्सिया // 218 // (पलियोवम दोऊणा, उक्कोसेण वियाहिया / असुरेन्दवज्जेताण, जहन्ना दस हिस्सगा। पसियोवममेगं तु, उक्कोसेण वियाहियं / वन्तराणं

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