Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 13
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ { श्रीमदाममसुधासिन्धुः त्रयोदशमो-विभागा पच्छा य पुरत्थयो य, पयोगकाले य दुही दुरन्ते / एवं अदत्ताणि समायअन्तो, रूवे अतित्तो दुहियो अणिस्सो // 31 // रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कतो सुहं हुज कयाइ किंचि ? / तत्थोवभोगेऽवि किले सदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं // 32 // एमेर रूवम्मि गयो पयोसं, उवेइ दुक्खोहपरंपरायो / पट्टचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे // 33 // रूवे विरत्तो मणुयो विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण / न लिप्पई भवमज्झेवि सन्तो, जलेण वा पुक्खरिणीपलासं // 34 // सोअस्स सह गहणं क्यन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु।तं दोसहेउं अमणुनमाहु, समो अ जो तेसुस वीरागो॥३५॥ सहस्त सोयं गहणं वयन्ति, सोयरस सद्द गहणंवयंति। रागस्म हेउं समणुनमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु (तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु / तं दोसहेउं यमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो)॥३६॥ सद्दे सु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं / रागाउरे हरिणमिउव्व मुद्धे, सद्दे अनित्ते समुवेइ मच्चु॥ 37 // जे यावि दोमं समुवेइ तिब्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं / दुइन्तदोसेण सएण जन्तू, न किंचि सद्द अवरज्मई से // 38 // एगन्नरत्ते रुइरंसि सद्दे, अतालिसे से कुणई परोसं / दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागों // 31 // सदाणुगासागुगए य जीवे, चराचरेहिं सय(हिंमइ)णे गरूवे / चितेहिं ते परियावेइ बाले, पीलेइ अत्तट्ठगुरु किलि? // 40 // सदाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसनिरोगे। वए वियोगे य कहिं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तिलाभे ? // 41 // सद्दे अतिते अपरिग्गहमि, सत्तोवसतो न उवेइ तुढिं / अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले श्राययई अदत्तं // 42 // तराहाभिभूयस्स श्रदत्तहारिणो, सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे य / मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुबई से / 43 // मोसस्स पच्छा य पुरत्थयो य, पयोगकाले य दुही दुरन्ते / एवं अदत्ताणि समायअन्तो, सद्दे अतित्तों दुहियों अणिस्सों

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