Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 13
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 17.) . . . / श्रीमदागमसुधासिन्धु :: त्रयोदशमो विभागः विवजणा बालजगस्त दूरा / सज्झाय एगंतनिसेवणा य, सुत्तत्थसंचिन्तणयाघिई य // 3 // याहारमिच्छे मियमेसणिज्जं, सहायमिच्छे निउणत्थरोह)बुद्धिं / निकेयमिच्छिज विवेगजोगं, समाहिकामे समणे तवस्सी // 4 // न वा लभिजा निउणं सहायं, गुणाहियं वा गुणयो समं वा / एगोवि पावाइ विवजयंतो (अणायरंतो), विहरेज कामेसु असज्जमाणो // 5 // जहा य अंडपभवा बलागा, अंडं बलागप्पभवं जहा य / एमेव मोहाययणं खु तरह, मोहं च तराहाययणं वयन्ति // 6 // रागो य दोसोवि य कम्मवीयं, कम्मं च मोहप्पभवं वयन्ति / कम्मं च जाईमरणस्स मूलं, दुक्खं च जाईमरणं वयन्ति // 7 // दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो, मोहो हथो जस्स न होइ तराहा / तराहा हया जस्स न होइ लोभो, लोभो हो जस्स न किंचणाई // 8 // रागं च दोसं च तहेव मोहं, उद्धत्तुकामेगा समूल-जालं / जे जे वाया पडि. वजियया (यपाया परेवजियवा), ते कित्तइस्सामि ग्रहाणुःवि // 1 // रसा पगामं न हु (नि-)सेवियव्वा, पायं रसा दित्तिकरा नराणं / दित्तं च कामा समभिवन्ति, दुमं जहा साउफलं व पक्खी // 10 // जहा दवग्गी पउरिन्धणे वणे, समास्यो नोवसमं उवेइ / एविन्दियागीवि पगामभोरणो, न बम्मयारिस्स हियाय कस्सई // 11 // विवित्त-सिज्जासण-जन्तियाणं, अोमासणाणं(-ई.) दमिइन्दियाणं / न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं, पराइयो बाहिरियोसहेहिं // 12 // जहा विरालावसहरस मूले, न मूसगाणं वसही पसत्था / एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे, न बम्भयारिस्स खमो निवासो॥ 13 // न रूवलावराण-विलासहासं, न जंपियं गिय पेहियं वा / इत्थीण चित्तंसि निवेसइत्ता, दठ्ठ ववस्से समणे तवस्सी // 14 // यदंसणं चेव अपत्थणं च, अचिन्तणं चेवं अकित्तणं च। इत्थीनणस्सारिय-भाणजुग्गं, हियं सया बम्भवए रयाणं // 15 // कामं तु देवीहि विभूसियाहिं, न चाइया खोभाउं तिगुत्ता / तहावि एगन्तहियंति नचा, विवित्तवासो (भावो) मुगिणं पसत्थो

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