Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 13
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् / अध्ययन 30 ] मारिकम्ना, अारिकम्मा य ाहिया / नीहारिमणीहारी, श्राहारच्छेश्रो दुसुवि // 13 // योमोयरणं पंचहा, ममासेण वियाहियं / दबयो खितकालेणं, भावेणं पजवेहि य // 14 // जो जस्स उ थाहारो, तत्तो श्रोमं तु जो करे / जहन्नेणेगसित्थाई, एवं दव्वेण ऊ भवे // 15 // गामे नगरे तह, रायहाणिनिगमे य ागरे पल्ली / खेडे कब्बडदोणमुह-पट्टण-मडंब-संबाहे // 16 // था रमाए विहारे, सन्निवेसे समायघोसे य / थलिसेणा-खंधारे, सत्थे संवट्टकोट्टे य // 17 // वाडेसु य रत्थासु य, घरेसु वा एव मित्तियं खितं / कप्पइ उ एवमाई, एवं खित्तेण ऊ भवे // 18 // पेडा य श्रद्धपेडा, गोमुत्ति पयंगवीहिया चेव / मबुका-बट्टाऽऽयय-गन्नु पच्छागया छट्टा // 11 // दिव. सस्म पोरिसीणं, चउराहंपि उ जत्तियो भवे कालो / एवं चरमाणो खलु, कालोमाणं मुणेयव्वं // 20 // अहवा तइयपोरिसीए, ऊणाए घासमेसंतो। चउभागूणाए वा, एवं कालेण ऊ भवे // 21 // इत्थी वा पुरिसो वा, अलंकियो वाऽणलंकियो वावि / अनयरवयत्थो वा, अनयरेणं च वत्थेणं // 22 // अन्नेण विसेसेणं, वराणेणं भावमणुमुअन्ते उ / एवं चरमाणे खनु, भावो मोणं मुणे .व्वं // 23 // दव्वे खित्ते काले, भावंमि य ग्राहिया उ जे भावा / एएहिं योमचरयो, पजवचरयो भवे भिक्खू // 24 // अविहगोयरग्गं तु, तहा सत्तेव एसणा / अभिग्गहा य जे अन्ने, भिवखायरियमाहिया // 25 // खीरदहि-सप्पिमाई, पणीयं पाणभोयणं / परिवजणं रगणं तु, भणियं रसविवजणं // 26 // ठाणा वीरामणाईया, जीवरस उ सुहावहा / उग्गा जहा धरिज्जंति, कायकिलेसं तमाहियं // 27 // एगंतमणावाए, इत्थी सु-विवजिए / सयणासण-सेवणया, विवित्तं सयणासणं // 28 // एसो बाहिरगतवो, समासेण वियाहियो / अम्भितरं तवं इत्तो, कुच्छामि अणुपुव्वसो // 21 // पायच्छित्तं विणो, वेयावच्चं तहेव सज्झायो / झाणं च विउस्सगो, एसो अभितरो लवो // 30 // पालोयणा

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218