Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 13
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 179
________________ 11] ... [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / अये.दशमी विभागः वोल्छिदिय) जीवे थाहारमन्तरेण न संकिलिस्सा ॥३५॥कसाय-पञ्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किंजणेइ ? कसाय-पत्र खाणेणं वीयरायभावं जोड, वीयरायभावं पडिपन्नेऽविय णं जीवे समसुहदुवखे भवइ // 36 // जोगपञ्चरखाणेणं भंते ! जीवे कि जणेइ ? जोगपञ्चक्खाणेणं अजोगयं जणे,इ, अजोगी णं जीवे नवं कम्म न बंधर, पुत्रबद्धं निजरेइ // 37 // सरीरपञ्चवखाणेणं भंते ! जीवे किं जणेइ ? सरीरपञ्चक्वाणेणं सिद्धाइसय-गुणकित्तणं निव्वत्तेइ, सिद्धाइसयगुणसंपन्ने य णं जीवे लोगग्गभावमुवगए परमसुही भवइ // 38 // सहायपञ्चवखाणेणं भंते ! जीये कि जोइ ? सहा-पञ्चक्खाणेणं एगीभावं जोइ, एगीभावभूए य जीवे एगग्गं भावमाणे अप्पसद्दे अप्पझझे अप्पकलहे अप्यकसाए अपतुमतुमे संजमबहुले संवरबहुले समाहिए श्रावि भवइ // 31 / / भत्तपञ्चवखाणेणं भंते ! जीवे कि जोइ ? भत्तपञ्चक्खाणेणं अणेगाई भवसयाई निरु भइ // 10 // समाव-पच खाणेणं भंते ! जीवे कि जोइ ? सम्भाव-पञ्चक्खाणेणं अणियट्टि जणयइ, अणियट्टि पडिबन्ने (पडिवन्ननिव्वुइए) य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मसे खवेइ, तं जहा-वेयणिज्ज आउयं नाम गोयं, तो पच्छा सव्वदु. क्खाणमन्तं करेइ (तयो पच्छा सिझड)॥४१॥ पडिरूवयाए णं भंते ! जीवे किं जणोइ ? पडिरूवयाए णं लापवियं जणेइ, लहुभूए णं जीवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसाथ लगे विसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमत्ते सव्वपाणभूयजीव सत्तेनु वीससणिजरूचे अप्प(प)डिलेहे जिईदिए विउलतव-समिइ-समन्नागए यावि भवइ // 42 // वेयावच्चेणं भंते ! जीवे किं जोइ ? वेयावच्चेणं तिस्थयरनामगुतं कम्मं निबंधः // 43 // सव्वगुणसंपुन्नयाए णं भंते ! जीवे कि जोइ ? सव्वगुण-संपुन्नयाए णं अपुणरावत्तिं जणेइ, अपुणरावति पत्तए णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं नो भागी भवइ // 44 // वीयरागयाए णं भंते ! जीवे किं जणेइ ? वीयरागयाए णं नेहाणुबंधणाणि तराहाणुबन्धणाणि य वुच्छिदइ, मणुराण.मगुर.णेसु सद्द-रूव-रस-फरिस-गंधेसु सचित्ताचित्तमीसएसु

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