Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 13
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 171
________________ 154 [ श्रीमदागमसुधासिन्धु त्रयोदशी विमागः // 27 // अथ यं सप्तविंशमध्ययनम् // थेरेगणहरे गग्गे, मुणी पासि विसारए / बाइगणे गणिभावंमि, समाहिं पडिसंधए // 1 // वहणे वहमाणस्स, कतार अइवत्तए / जोगे वहमाणस्स, संसारो अइवत्तए // 2 // खलु के जो उ जोएइ, विहंमाणो किलिस्सई / असमाहिं च वेएइ, तुत्तयो से य भजई // 3 // एगं डसइ पुच्छमि एगं विधइशभक्खणं / एगो भंजइ समिलं, एगो उप्पहपट्टियो // 4 // एगो पडइ पासेणं, निवेसइ निविजई / उक्कुदइ उप्फिडई, सढे बालगवी वए // 5 // माई मुद्धेण पडई कुद्धे गच्छइ पडिवहं / मयलक्खेण चिट्ठाई, वेगेण य पहावई // 6 // छिन्नाले छिदई सिल्लिं, दुद्दन्ते भुजई जुगं / सेविय सुस्सुयाइत्ता, उज्जुहित्ता पलायई ॥णाखलुका जारिसा जुजा, दुस्सीसा विहु तारिसा / जोइया धम्मजाणंमि, भजन्ता धिइदुब्बला // 8 // इड्डीगारविए एगे, एगित्य रसगारखे / सायागारविए एगे, एगे सुचिरकोहणे // 1 // भिक्खाऽऽलसिए एगे, एगे श्रोमाणभीरुए थद्धे / एगं च अणुसासंमी, हेउहिं कारणेहि य // 10 // सोऽवि अंतरभासिल्लो, दोसमेव पकुवई (पभासइ)। थायरियाणं तं वयणं, पडिकूलेइ अभिक्खणं // 11 // न सा ममं वियाणाइ, नवि सा मज्झ दाहिई / निग्गया होहिई मन्ने, साहू अन्नोऽत्थ वचउ // 12 // पे(पो)सिया पलिउंचति, ते परियति समंतश्रो / रायविट्टि च मन्नंता, करिन्ति भिउडिं मुहे // 13 // वाइया संगहिया चेव, भत्तपाणेहिं पोसिया। जायपक्खा जहा हंस, पक्कमति दिसो दिसि // 14 // अह सारही विचितेइ, खलुके हि समागए। किं मम दुट्ठसीसेहिं ? अप्पा मे श्रवसीयई // 15 // जारिसा मम सीसा उ, तारिसा गलिगदहा / गलिगदहे चइत्ताणं, दढं प(रि)गिराहई तवं ॥१६॥मिउमद्दवसंपन्नो, गंभीरो सुसमाहियो / विहरइ महि महप्पा, सीलभूएण अप्पणा // 17 // ति बेमि // // इति सप्तविंशमभ्ययनम् // 27 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218