Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 13
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 169
________________ 142 [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / / त्रयोदशमो विनाका मुहपत्तिं पडिलेहित्ता, पडिलेहिज गुच्छयं / गुच्छगलइयंगुलियो, वत्थाई पडिलेहए // 23 // उड्ढ थिरं अतुरियं, पुचि ता वत्थमेव पडिलेहे / तो बिइयं पप्फोडे, तइयं च पुणो पमजिजा // 24 // अणचावियं श्रवलियं, श्रणाणुवंधि अमोसलिं / चेव छप्पुरिमा नव खोडा, पाणीपाणिविसोहणं (पमजणं) // 25 // श्रारभडा सम्मदा, वज्जेयवा य मोसली तइया / पप्पोडगा उत्थी, विविखत्ता वेइया छट्टा // 26 // पसिढिल-पलम्ब-नोला, एगा मोसा अणेगरूवधुणा / कुगाइ पमाणि पमायं, संकिय गणणोवगं कुन्जा // 27 // अण्णाइरित्त पडिलेहा, अविवच्चासा तहेव य / पढमं पयं पसत्थं, सेसाणि उ अप्पसत्थाणि // 28 // पडिलेहणं कुणंतो, मिहो कहं कुणइ जगावयकहं वा / देइ व पञ्चक्खाणं, वाएइ मयं पडिच्छइ वा // 26 // पुढवी ग्राउकाए, तेऊ वाऊ वणस्सइ तसाणं / पडिलेहणापमत्तो, छराहंपि विराहयो होइ // 30 // पुढवी श्राऊक्काए, तेऊ वाऊ वणस्सइ तसाणं / पडिलेहणा-याऊत्तो, छराहं संरक्खश्रो होइ // 31 // तइयाए पोरिसीए, भत्तं पाणं गवेसए / छराहं अन्नयरागंमि, कारणमि समुट्ठिए // 32 // वेयण वेयावच्चे, इरियट्ठाए य संजमट्टाए / तह पाणवत्तियाए, छ8 पुण धम्मचिंताए // 33 // निग्गन्थो धिइमन्तो, निग्गन्थीवि न करिज छहिं चेव / थाणेहिं तु इमेहिं, अणइक्मणा य से होइ // 34 // श्रायंके उवसग्गे, तितिक्खया बम्भरगुत्तीसु। पाणिदया तवहेडं, सरीरकुच्छेयणटाए // 35 // अवसेसं भंडगं गिज्मा, चक्खुसा पडिलेहए। परमद्धजोयणाओ, विहारं विहरे मुणी // 36 // चउत्थीए पोरिसीए, निक्खिवित्ता ण भायणं / सज्झायं च तश्रो कुजा, सव्वभावविभावणं (सव्वदुक्ख-विमोवखणं) // 37 // पोरिसीए चउभाए, वंदित्ता ण तो गुरु पडिक्कमित्ता कालस्स, सिज्जं तु पडिलेहए // 38 // पासवणुचारभूमिं च, पडिलेहिज जयं जई / काउस्सग्गं तो कुजा, सव्तदुक्ख-विमुक्खणं // 31 // देसियं च अतीचारं, चिंतिज अणु

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