Book Title: Agam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 161
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मम फासुयपाणगपरिभोगेण सरीरगं विहडियंति, एयं च दुट्ठपावमहासमुदाएक्कपिंडं तुह वयणं सोच्चा सखुद्धाओ सव्वाओ चेव इमाओ संजईओ, चिंतियं च एयाहिं जहा निच्छयओ विमुच्चामो फासुगोदगं, तयझवसायस्सालोइयं निंदियं गरहियं चेयाहिं, दिनं च मए एयाण पायच्छित्तं, एत्यचएण तव्वयणदोसेणं जं ते समजियं अच्चंतकट्ठविरसदारुणं बद्धपुटनिकाइयं तुंगं पावरासिं तं च तए कुट्ठभगंदरजलोदरवाउगुम्मसासनिरोहहरिसागंडमालाहिं अणेगवाहिवेयणापरिगयसरीराए दारिहदुक्खदोहग्गअयसऽब्भक्खाणसंतावुव्वेगसंदीवियपज्जालियाए अणंतेहिं भवग्गहणेहिं सुदीहकालेणं तु अहनिसाणुभवेयव्वं, एएणं कारणेणं एसेमा गोयम! सा रज्जजिया जाए अगीयस्थत्तदोसेण वायामेत्तेणेव एमहंतं दुक्खदायगपावकम्भं समजियंति॥२॥ अगीयत्यत्तदोसेणं, भावसुद्धिं ण पावए। विणा भावविसुद्धीए, सकलुसमणसो मुणी भवे॥२०६॥ अणुथेवकलुसहिययत्तं, अगीयत्थत्तदोसओ। काऊण लक्खणजाए, पत्ता दुक्खपरंपरा ॥७॥ तम्हा तं गाउ बुद्धेहि, सव्वभावेण सव्वहा गीयत्थेण भवित्ताणं, कायव्वं निक्कलुसं मण॥८॥ भयवं! नाहं वियाणामि, लक्खणदेवी हु अज्जिया। जा अकलुसमगीयत्थत्ता, काउ पत्ता दुक्खपरंपरा ॥९॥ गोयमा! पंचसु भरहेसु एरवएसु उस्सप्पिणीओसप्पिणीए एगेगा सव्वकालं च्वीसिया सासयमवोच्छित्तीए 'भूया तह य भविस्सई अणाइनिहणाए सुधुवं एत्था जगठिइ एवं गोंयम! एयाए चउवीसिगाए जा गया॥२१०॥ अतीयकाले असीइमा, तहियं जारिसगे अहयो सत्तरयणी पमाणेणं, देवदाणवपणमिओ॥१॥ तारिसओ चरिमो तित्थयरो, जया तया जंबुदाडिमो। राया भारिया तस्स, ॥ श्री महानिशीथसूत्रं ॥ | १५० पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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