Book Title: Agam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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संणिसेज्जा तंजहा अउम् उत्तमंगे कुछ वामखंधगीवाए वामकुच्छीए क् वामचलणयले लए दाहिणचलणयले स्वआ दाहिणकुच्छीए हुआ दाहिणखंधगीवाए ।१७। 'दुसुमिणदुन्निमित्ते गहपीडु वसग्गमारिरिट्ठ भए । वासासणिविज्जूए | वायारिमहाजणविरोहे ॥२३॥ जं चत्थि यं लोगे, तं सव्वं निद्दले इमाए विज्जाए । सत्यपहे (सट्ट ( झ ) झण्हे मंगलयरे पावहरे | सयलवर क्खयसोक्खदाई काउमिमे) पच्छित्ते, जइ णं तु ण तब्भवे सिम्झे ॥ २४ ॥ ता लहिऊण विमाणं (गयं) सुकुलुप्यत्तिं दुयं च पुण बोहिं, सोक्खपरं परएणं सिज्झे कम्मट्ठबंधरयमल विमुक्ते ॥ २५ ॥ गोयमोत्ति बेमि । से भयवं! किं प ( ए ) याणुमेत्तमेव पच्छित्तविहाणं जेणेवमाइस्से ?, गोयमा ! एयं सामन्त्रेणं दुवालसण्ह कालमासाणं पइदिणमहन्निसाणुसमयं पाणोवरमं जाव सबालवुड्ढ सेहमयहररायणियमाईणं, तहा य अपडिवायमहो ऽवहिमणपज्जवनाणीउ छउमत्थतित्थयराणं एगंतेणं अब्भुट्ठाणारिहावस्सगसंबंधियं चेव सामन्त्रेणं पच्छित्तं समाइट्ठ, नो णं एयाणुमेत्तमेव पच्छित्तं, से भयवं! किं अपडिवायमहो ऽवहीमणपजवनाणी |छ उमात्थवीयरागे सयलावस्सगे समणुट्ठीया ?, गोयमा ! समणुट्टीया, न केवलं समणुट्टीया जमगसमगमेवाणवरयमणुट्ठीया, से भयवं ! कहं ?, गोयमा ! अचिंतबलवी रियबुद्धिनाणाइसयसत्तीसामत्थेणं, से भयवं ! केणं अट्ठेणं ते समणुट्टीया ?, गोयमा ! मा णं उत्सुत्तुम्मग्गपवत्तणं मे भवउत्तिका ऊणं । १८ । से भयवं! किं तं सविसेसं पायच्छित्तं जाव णं व्यासी?, गोयमा ! वासारनियं | पंथगामियं वसहिपारिभोगियं गच्छा यारमइक्कमणं संघायारमइक्कमणं गुत्ती भेयपयरणं सत्तमंडली धम्माइकमणं अगीयत्थगच्छपयाणजायं ॥ श्री महानिशीथसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित
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