Book Title: Agam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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सुमहासमुप्पन्नेसु अंतोमुहुत्तावसेसकंठगयपाणेसुंपिणं मणसावि 3 खंडणं विराहणं ण करेजा कारवेज्जा ण समणुजाणेजा जाव णं नारभेजा न समारंभेजा जावज्जीवाएत्ति, से णं जयणाए भत्ते से णं जयणाय धुवे से णं जयणाए व दक्खे से णं जयणाए वियाणेत्ति, गोयमा! सुसढस्स उप महती संकही परमविम्हयजणणी यो२२॥ चूलिया पढमा एगंतनिज्जरा, चू०१ अ०७॥
से भयवं! केणं अटेणं एवं वुच्चइ?, तेणं कालेणं तेणं समएणंसुसढनामधेजे अणगारेह भूयवं, तेणंच एगेगस्सणं पक्खस्संतो पभूयवाणियाओ आलोयणाओ विदिन्नाओ सुमहंताईच अच्चंतधोरसुदुक्कराई पायच्छित्ताई सभणुचिन्नाइंतहावि तेणं वएणं विसोहिपयं न समुवलद्धति, एतेणं अटेणं एवं वुच्चइ, से भयवं! केरिसा उ णं तस्स सुसढस्स वत्तव्वया?, गोयमा! अस्थि ३ ह चेव भारहे वासे अवंतीणाम जणवओ, तत्थ य संबुक्के नाम खेडगे, तमि य जन्मदरिद्दे निम्मेरे निकिवे किविणे णिराणुकंपे अइक्करे निक्कलुणे नितिंसे रोद्दे चंडरोद्दपयंडदंडे पावे अभिग्गहियभिच्छादिट्ठी अणुच्चरियनामधेजे सुज्जसिवे नाम धिज्जाइ अहेसि, तस्स य धूया सुज्जसिरी, सा य परितुलियसयलतियणनरनारीगणा लावन्नकंतिदित्तिरूवसोहग्गाइसएणं अणोवमा अत्तग्गा, तीए अन्नभवंतरंमि इणमो हियएण दुच्चितियं अहेसि, जहा णं सोहणं हवेज्जा जइ णं इमस्स बालगस्स माया वावजे तओ मज्झ असवकं भवे, एसो य बालगो दुज्जीविओ भवइ ताहे मझ सुयस्स रायलच्छी परिणमेज्जति, तक्कम्मदोसेणं तु जायमेत्ताए चेव पंचत्तमुवगया जणणी, तओ गोयमा! तेणं सुज्जसिवेणं महया किलेसेणं छंदमाराहमाणेणं बहूणं अहिणवपसूयजुवतीणं घाघरि ॥ श्री महानिशीथसूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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