Book Title: Agam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 204
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दढं हविया। अह कुज्ना 3 ममत्तं ता सुद्धी गोयमा! नस्थि॥४॥ किं बहुणा? गोयमा! एत्थं, दाऊणं आलोयणी रयणीए आविए पाणं, कत्थ गंतुं स सुझिही?॥५॥ आलोइयनिंदियगरहिओवि क्यपायच्छित्तनीसल्लो छाइक्कमे ण रक्खे जो, कत्थ सुद्धिं लभेज सो?॥६॥ अपसत्थे य जे भावे, परिणामे य दारुणी पाणाइवायस्स वेमणे, एस पढमे अइक्कमे ॥७॥ तिव्वरागा यजा भासा, निठुरखरफरुसककसा। मुसावायस्स वेरमणे, एस बीए अइक्कमे ॥८॥ उगह अजाइत्ता, अचियत्तंमि उवग्गहे। अदत्तादाणस्स वेरमणे, एस तइए अइक्कमे ॥९॥ सद्दा रूवा रसा गंधा, फासाणं पवियारणे। मेहुणस्स वेरभणे, एस चउत्थे अइक्कमे॥१००॥इच्छ। मुच्छ। य गेही य, कंखा लोभे य दारुणे। परिग्गहस्स वेरमणे, पंचमगेसाइक्कमे ॥१॥ अइभत्ताहार होइत्ता, सूरक्खितमि संकिरे। राईभोयणस्स वेमणे, एस छटे अइक्कमे ॥२॥ आलोइयनिंदियगरहिओवि क्यपायच्छित्तणीसलो। जयणं अयाणभाणो, भवसंसारं भमे जहा सुसढो॥१०॥भयवं! को उणसोसुसढो? क्यरावासा जयणा? जमजाणमाणस्सणं तस्सआलोइयनिंदियगरहिओ( यस्सा)वि क्यपायच्छित्तस्सावि संसारं णो विणिट्ठियंति?, गोयमा! जयणा नाम अट्ठारसहं सीलंगसहस्साणं सत्तरसविहस्स णं संजमस्स चोदसण्हं भूयगामाणं तेरसण्हं किरियाठाणाणं सबझब्भंतरस्स णं दुवालसविहस्स तवोऽणुट्ठाणस्स दुवालसण्हं भिक्खुपडिमाणं दसविहस्सणं सभणधम्मस्सणवण्हं चेव बंभगुत्तीणं अट्ठण्हं तु पश्यणमाईणं सत्तण्हं चेव पाणपिंडेसणाणं छण्हं तु जीवनिकायाणं पंचण्हं तु महव्व्याणं तिहं तु चेव गुत्तीणं जाव णं तिण्हमेव सम्मइंसणनाणचरित्ताणं भिक्खू कंतारदुभिक्खायंकाईसु णं ॥ श्री महानिशीथसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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