Book Title: Agam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 232
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ताव णं से अणवस्यालोयणं प्रयच्छे, सेऽवि णं गुरू तस्सतही पायच्छित्ते पयाइ जहा णं संजमजयणं भूयगं, तेणेव | अहन्निसाणुसमयरोघट्टझाणाइविष्पमुक्के सुहझवसाये निरंतर पविहरेजा, अहऽन्या णं गोयमा! से पावमती जे केइ छट्टट्ठमदसमदुवालसद्धमासमासजावणंछम्मासखवणाइए अन्नयरे वा सुमहं कायकेसाणुगए पच्छित्ते से णं तहत्ति समणुढे, जे य उ एगंतसंजभकिरियाणं जयणाणुगए मणोवइकायजोगे सयलासवनिरोहे सम्झायझाणावस्सगाइए असेसपावकम्मरासिनिदहणे पायच्छित्ते से णं पमाए अवमन्ने अवहेले असहहे सिढिले जावणं किल किमित्य दुकरंति काऊणं न तहा समणुढे, अनया णं गोयमा! अहाउयं परिवालेऊणं से सुसढे मरिऊणं सोहम्मे कप्पे इंदसामाणिए महिड्ढी देवे समुप्पन्ने, तओवि चविऊणं इहई वासुदेवो होऊणं सत्तमपुढवीए समुप्पन्ने, तओ उव्व? समाणे महाकाए हत्थी होऊणं मेहुणासत्तमाणसे मरिऊणं अणंतवणस्सतीए गयत्ति, एसणं गोयमा! से सुसढे जेणं आलोइयनिंदियगरहिए णं क्यपायच्छित्तेवि भवित्ताणीजयणं अयाणमाणे भमिही सुइरंतु संसारे ॥२९॥ से भयवं! कयरा उण तेणं जयणा " विन्नाया जओ णं तं तारिसं दुक्क कायकेसं काऊणंपि तहावि णं भमिहिइ | सुइरं तु संसारे?, गोयमा! जयणा णाम अद्वारसहं सीलंगसहस्साणं संपुन्नाणं अखंडियविरहियाणं जावजीवमहन्निसाणुसमयं धारणं कसिणसंजमकिरियं अणुमत्रंति, तं च तेण न विन्नायंति, तेणं तु से अहन्ने भमिहिइ सुइरं तु संसारे, से भयवं! केणं अद्वेणं तंच तेणंण विन्नायंति?, गोयमा! तेणं जावइए कायकेसे कए तावइयस्स अट्ठभागेणेव जइ से बाहिरपाणगं विवज्जेन्तो ॥ श्री महानिशीथसूत्र ॥ । २२१ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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