Book Title: Agam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 202
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उयाहु छज्जीवनिकायमाइसंजभे संरक्खेयव्यो?, गोयमा! जे णं छक्कायसंजमं रक्खे से णं अणंतदुक्खपयायगाउ दोग्गइगमणाउ अत्ता संरक्खे, तम्हा छकायाइसंजममेव रखेयव्य होइ।२१।से भयवं! केवतिए असंजमट्ठाणे पत्रत्ते?, गोयमा! अणेगे असंजमट्ठाणे पनत्ते, जाव णं कायासंजभट्ठाणा, से भयवं! कयरे णं से कायासंजमट्ठाणे?, गोयमा! कायासंजभट्ठआणे अणेगहा पनत्ता, तंजहा 'पुढविदगागणिवाऊवणप्फई तह तसाण विविहाणी हत्थेणवि फरिसणया वजेजा जावजीवंपि॥२॥ सीउण्हखारखते अग्गीलोणूस अंबिले हे। पुढवादीण परोप्पर ख्यंकरे वन्झसत्थेए॥३॥ हाणु-मद्दणसोभणहत्थंगुलिअक्खिसोयकरणेणी आवीयते अणंते आऊजीवे खयं जंति॥४॥संधुक्कणजलणुज्जालणेण उज्जोयकरणमादीहिंी वीयणफूभणउब्भावणेहिं सिहिजीवसंघायं॥५॥जाइ खयं अन्वेऽविय छज्जीवनिकायमइगए जीवे। जलणी सुद्धइओवि हु संभक्खइ दसदिसाणं च ॥६॥वीयणगतालियंटयचामरउक्खेवहत्थतालेहिधावणडेवणलंघणऊसासाईहिं वाऊणं॥७॥अंकूरकुहरकिसलयपवालपुष्पफलकंदलाईणीहत्थफरिसेण बहवे जति खयं वणप्फई जीवे॥८॥गमणागमणनिसीयणसुयणुट्ठाणअणुवउत्त्यपमत्तो वियलिंति बितिचउपंचेंदियाण गोयम! ख्यं नियमा॥९॥पाणाइ वायविरई सिवफलया गिहिऊण ता धीमी मरणावयंमि पत्ते मरेज विरईन खंडेजा॥७०॥ अलियवयणस्स विरई सावजं सच्चभवि न भासिज्जा। परदव्वहरणविरई करेज दिनेवि मा लोभं॥१॥धणं दुद्धरबंभव्वयस्स काउं परिग्गहच्चायो राईभोयणविरई पंचिंदियनिग्गहं विहिणा॥२॥ अन्ने य कोहमाा रागद्दोसे य(आ) लोयणं दा। ममकारअहंकारे पयहियवे ॥ श्री महानिशीथसूत्र [ १९१ पू. सागरजी म. संशोधिता For Private And Personal Use Only

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