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(३) और २२ तीर्थंकरों के साधु तो नाटक देखै नहीं, देखै तो सत्य कहै और दूसरी वक्त ससझ नावें कि पुरुष से स्त्री अधिक मोहक है इसलिये देखने खड़े न रहे.
इसलिये २२ तीर्थकरो के साधुओं को १० कल्प में कुछ नियत कुछ अनियत हैं.
(१) अचेलक पणा का नियम नहीं, चाहे जीर्ण अल्प मूल्य का अथवा पंच रंगी वहु मूल्य का वस्त्र पहरे उनको दोप न लगे ऐसा वर्तन रखे अर्थात् २२ तीर्थकरो के साधुओं को यह कल्प अनियत है. दो तीर्थंकरो के साधुओं को नियत है कि अल्प मूल्य के वस्त्र पहरे.
(२) दूसरा कल्प नियतं है अपने निमित्त किया हुआ आहारादि न लेवे अर्थात् साधु के निमित्त आहारादि वनावे तो साधु न लेवे परन्तु २२ तीर्थकरो के साधुओं को विशेष यह है कि जिसके निमित्त हो उस साधु को न कल्पे दूसरों को कल्पे और ऋपम महावीर के साधुओ को वो आहार जिस साधु के निमित्त बनाया हो वो आहारादि सब साधुओं को न कल्पे सिर्फ गृहस्थोंने अपने लिये ही वनाया हो वो साधुओं को कल्प सकता है वोही ले सकें.
(३) जिस गृहस्थ के मकान मे ठहर उसका आहारादि कोई भी साधु को न लेना चाहिये.
१ अशन २ पान ३ खादिम ४ स्वादिम चार प्रकार का आहार न कल्पे. ५ वस्न ६पात्र ७ कंवल ८ रजोहरण है सूई १० पिष्फलक ११ नख कतरणी १२ कर्ण शोधन शली यह १२ वस्तु न कल्पे, दोष का संभव और वस्ती का अभाव न होवे इसलिये मना की है परन्तु रात्रि को जागृत रहकर प्रभात का प्रतिक्रमण अन्यत्र करे तो जहां प्रतिक्रमण किया उसका घर शय्यातर होवे यदि जो रात को नीद वहां ही लेवे और दूसरी जगह प्रभात का प्रतिक्रमण करे तो दोनों ही घर शय्यातर होवें.
इतनी चीन शय्यातर की काम लगे. तृण डगल भस्म (राखोड़ी) मल्लक पीठ फलग शय्या संथारो लेपादि वस्तु
और उसका घर का लड़का दीक्षा लेवे तो सब उपकरण सहित लेना कल्पे (वो साधु लेसकते हैं ).
(४) राजपिंड २२ तीर्थंकरो के साधुओं को कल्पे क्योकि वो समयज्ञ होने से निंदा नहीं कराते न उनको कोई अपमान करसकते वो राजा सेनापति पुरोहित नगर सेठ अमात्य और सार्थवाह युक्त राज्याभिषेक से भूपित होना चाहिये,