Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Author(s): Manikmuni
Publisher: Sobhagmal Harkavat Ajmer

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Page 9
________________ * अन् * t || शासन नायक महावीर प्रभु और सद्बोध दाता परम गुरु महाराज पन्यासजी श्री हर्ष मुनिजी आदि पूज्य पुरुषों को नमस्कार करके कल्पसूत्र का हिन्दी भाषान्तर हिन्दी जानने वालों के लिये मूल सूत्र के साथ लिखता हूं: कल्प सूत्र । कल्प शब्द से साधु का मोक्ष मार्ग आराधन के लिये श्राचार जाननाः और उन आचारों को सूचित करना वो कल्प सूत्र है अर्थात् कल्प सूत्र में साधुओं का चार (कर्त्तव्य वर्तन ) बताया है । जैनियों में सब पत्रों में पर्युषण पर्व मुख्य है । प्रथम कल्पसूत्र के बांचने और पठन पाठन के अधिकारी साधू ही थे, परन्तु आनन्दपुर नगर में ध्रुव सेन राजा के पुत्र के शोक निवारणार्थ राज सभा में उक्त सूत्र को सुनाया उस दिन से चतुर्विध संघ साधू, साध्वी, श्रावक, श्राविका, पठन पाठन और श्रवण फरने के अधिकारी हुये और प्रायः सर्वत्र साधू, साध्वी, श्रावक, श्राविका, सुनते हैं। साधू साध्वी की पठन पाठन की विधि टीकाओं से जान लेनी । कल्प (चार वर्तन ) · साधुओं का आचार दस प्रकार का है ( १ ) जीर्ण वस्त्र ( २ ) निर्दोष आहार ( ३ ) घर देने वाले का आहार आदि न लेना ( ४ ) राजाओं का आहार आदि न लेना ( ५ ) बड़े साधू को बंदन करना ( ६ ) पांच महाव्रत को पालना ( ७ ) बड़ी दीक्षा से चारित्र पर्याय जालना ( ८ ) देवसी, राई, पक्खी, चौमासी, सम्वत्सरी प्रतिक्रमण विधि अनुसार करना ( 8 ) आठ मास ग्राम ग्राम विहार करना (१०) वर्षा ऋतु में एक जगह पर रहना । साधू के चार में और तीर्थंकरों के आचार में क्या भेद है अथवा चौवीस तीर्थंकरों के साधुओं में क्या भेद है वो ग्रन्थान्तर से जान लेना । यहां पर थोड़ासा बताते हैं: दश कल्पों की गाथा. श्राचलक्कुद्देसिय, सिज्जायर रायपिंड किकम्मे; य जिठ्ठपढिक्कम, मासं पज्जोसस कप्पे ।

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