Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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विसइमं अज्झणं ( महानियंठिज्जं )
३८. इमा हु अन्ना वि अणाया निवा ! नियंठधम्मं लहियाण वी जहा ३६. जो पव्व इत्ताण महत्वयाई अनिगहप्पा य रसे सु गिद्धे ४०. आउत्तया जस्स न अत्थि काइ आयाण निक्लेव दुसुंछणाए
४१. चिरं पि से मु ंडरुई चिरं पि अप्पाण
४२. 'पोल्ले व मुट्ठी जह से असारे राढामणी वेरुलियप्पगासे
४३. कुसीलिंग असंजए
४६. तमंतमेणेव
संघावई
४४. 'विसं तु पीयं" 'एसे व धम्मो
४५. जे लक्खणं सुविण कुविज्जासवदारजीवी
४७. उद्देसियं अग्गी विवा
भवित्ता किलेसइत्ता
इह धारइत्ता संजयलप्पमाणे
१. फासइ (उ, ऋ ।
२. धीरजायं (सु) 1
उ
जह कालकूड विसओववन्नो पउंजमाणे
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४८. न तं अरी
कंठछेत्ता
से नाहिई मच्चुमुहं तु ४६. निरट्टिया
से असीले सया दुही विप्परियासुवेइ' । नरगतिरिक्खजोणि मोणं विराहेतु असाहुरूवे ॥
कीयगडं नियागं सव्वभक्खी भवित्ता
५०. एमेवहाछंदकुसीलरूवे" कुररी दिवा
नग्गरुई तस्य इमे वि से नत्थि परे वि लोए
उ
करेइ
पत्ते
३. पोल्लार (बृपा ) 1
४. संजयलाभमाणे (बृपा) 1
५. विसं पिवत्ता ( अ, आ ) विसं पिबंती
(बृ.) ।
तमेगचित्तो निहुओ सुणेहि । सोयंति एगे बहुकायरा नरा ॥ सम्मं नो फासयई' पमाया । न मूलओ छिदइ बंधणं से ।। इरियाए भासाए तहेसणार | न वीरजा' अणुजाइ मग्गं ॥ अथिरव्वए तनयमेहि भट्ट । न पारए होई हु संपराए । अयंतिए कूडकहावणे वा । अमहग्घए होइ य जाणएसु ॥ इसिज्झयं जीविय वहइत्ता | विणिधाय मागच्छइ से चिरं पि ॥
हणाइ सत्यं जह कुग्गहीयं । हणाड़ वेयाल इवाविवन्नो' ॥ निमित्तको ऊहल संपगाढे
1
न गच्छई सरणं तम्मि काले ॥
नमुचई किंचि अणेसणिज्जं । इओ चुओ गच्छइ कट्टु पावं ॥ जं से करे अप्पणिया दुरप्पा' । पच्छाणुतावेण दयाविहूणो ॥
जे उत्तमट्ठे विवज्जासमेई । दुहओ वि से भिज्जइ तत्थ लोए ॥ मग्गं विराहेतु जिणुत्तमाणं । परियावमेई ॥
भोगरसा गिद्धा निरट्ठसोया
६. एसो वि ( अ ); एसो व ( उ ) 1 ७. इवाविबंधणी (वृपा )
८. समेइ ( अ ) ।
६. दुरपया ( ऋ ) 1
१०. एमेव + अहाछंद एमेबहाछंद' ।
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