Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 117
________________ २०० उत्तरज्झयणाणि ५८. वइसमाहारणयाए णं भंते ! जोवे कि जणयइ ? वइसमाहारणयाए णं वइसाहारणसज्जवे विसोइ, विसोहेत्ता सुलहबोहियत्तं निव्वतेइ दुल्लहबोहियत्तं निज्जरेइ ।। ५६. कायसमाहारणयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? कायसमाहारणयाए णं चरित - पज्जवे विसोहेइ, विसोहेत्ता अहक्वायवरित्तं विसोहेइ, विसोहेत्ता चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खामंत करेइ ! ६०. नाणसंपन्नयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? नाणसंपन्नायाए णं जीवे सव्वभावाहिगमं जणयई । नाणसंपन्ने णं जीवे चाउरते संसारकंतारेन विणस्सइ || जहा सूई सत्तापडिया वि न विणस्सइ । तहा जीवे ससुते संसारे न विणस्सइ || नाणविणयतवचरितजोगे संपाउणइ, ससमयप रसमयसंघाय णिज्जे' भवइ ॥ ६१. दंसणसंपन्नयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? दंसणसंपन्नयाए गं भवमिच्छत्तछेयणं करेइ, परं न विज्झायइ' । 'अणुत्तरेणं नाणदंसणेण अप्पाणं संजोएमाणे सम्मं भावेमाणे विरहइ" ।। ६२. चरितसंपन्नयाए णं भंते! जोवे किं जणयइ ? चरितसंपन्नयाए णं सेलेसोभावं जes | 'सेलेसि पडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ" ।। ६३. सोइंदियनिग्गणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? सोइंदियनिग्गहेणं मणुष्णामणुष्णेसु सद्देसु राग दोसनिग्गहं जणथइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ॥ ६४. चक्खिदियनिग्गणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? चक्खिदियनिग्गहेणं मणुष्णामणुष्णेसु रूवेसु' रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ॥ ६५. घाणिदियनिग्रहेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? घाणिदियनिग्गृहेणं मणुण्णामणुण्णेसु गंधेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुत्रबद्धं च निज्जरेइ ॥ ६६. जिब्भिदियनिग्गणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? जिभिदियनिग्रहेणं मणुण्णा मणुष्णेसु रसेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ।। ६७. फासिदिय निम्गणं भंते! जोवे किं जणयइ ? फासिंदियनिग्गहेणं मणुण्णा मणुण्णेसु फासेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंघइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ || दंसणेणं विहरइ (बृपा ) । १. समयविसारए य ( अ ) 1 २. विज्झाइ परं अणाज्झायमाग ( अ ); विज्झाइ (ॠ) । ३. अप्पाण संजोएमा सम्मं भावेमागे अणुत्तरेणं नाणदंसणेण विहरइ ( अ ); अनुत्तरेणं नाण Jain Education International ४. सेलेसी पडिवन्ने विहरइ (बु); सेलेसि पडिवन्ने अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खयेति, ततो पच्छा सिज्झति ( बृपा) । ५. चखिदिए ( अ ) | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161