Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 131
________________ २१४ ८०. फासाणुवाए परिग्गहेण उप्पायने विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले रक्खणसन्निओगे | य अतित्तिलाभे' || न उवेई तुट्ठि | ८१. फासे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो असे ८२. तहाभिभूयस्स मायामुखं वड्ढइ ८३. मोसस्स पच्छाय एवं अदत्ताणि दु परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ॥ अदत्तहारिणो फासे अतित्तस्स परिग्गहे य । लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ पुरत्थओ य पओगकाले यदुही दुरंते । समाययतो फासे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ८४. फासाणु रत्तस्स नरस्स एवं कतो सुहं होज्ज कयाइ किचि ? | तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं 11 ८५. एमेव फासम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पट्ठिचित्तो य' चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ८६. फासे विरतो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्भे वि संतो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ८७. मणस्स भावं गहणं वयंति तं रागहेतु मणमाह । तं दोसहेउं अमणमा समय जो तेसु स वीयरागो ॥ मणं गहणं वयंति मणस्स भावं गहणं वयंति । रागस्स हे समणुष्णमाहु दोसस्स हेउं अमगुणमाहु || भावेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालिये पावइ से विणा । रागाउरे कामगुणेसु करेणुमग्गावहिए 'व नागें ॥ ६०. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं ८८. भावस्स गिद्धे कुणइ पओसं । मुणी विरागो || तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुतदोसेण स एण जंतू न किंचि भावं अवरज्झई से | ६१. एतरतं रुइरंसि भावे अतालिसे से दुक्खस्स संपीलमुवेड़ वाले न लिप्पई तेण ९२. भावानुगासाणुगए प जोवे चराचरे चित्तेहि ते परितावेइ बाले पोलेइ ९३. भावाणुवारण परिगण उपावणे विओगे य कहि सुहं से ? संभोगकाले य १. वाय ( अ ) ; वाए ण (सु); रागेण ( सुपा, नृपा) । २. अत्ति (वृ); अतित्ति' (वृपा) । ३. उ ( अ ) । ४. गण ( अ ) भावस्स (ऋ) । ५. निच्चं ( अ ) । Jain Education International हिंसइणेगरूवे । अत्तगुरु किलिट्ठे ॥ उत्तरभयनाणि ६. गए व्व ( अ ) ७. निच्च ( अ, वृ) । रक्खणसन्निओगे । अतित्तिला || । For Private & Personal Use Only ८. वाय ( अ ) वाए ण (सु) ; "रागेण ( सुपा, वृपा) । ६. अतित (तू) अतित्ति' ( बृपा) । www.jainelibrary.org

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