Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 129
________________ २१२ उत्तरज्झयमामि ५१. जे यावि दोसं समवेइ तिव्वं' तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुईतदोसेण सएण जंतू न किंचि गंधं अवरज्झई से । ५२. एगंतरत्ते रुइरंसि गंधे अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो । ५३. गंधाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिंसइणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तगुरू किलिठे॥ ५४. गंधाणुवाएण' परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे य कहि सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥ ५५. गंधे अतित्ते य परिसगहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहि । अतुट्रिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ।। ५६. तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो गंधे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ५७. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो गंधे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो।। ५८. गंधाणरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि?। तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ।। ५६. एमेव गंधम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पट्टचित्तो य चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। ६०. गंधे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझे वि संतो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ।। ६१. जिहाए रसं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुष्णमाहु । तं दोसहेउं अमणुण्णमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो।। ६२. रसस्स जिन्भ' गहणं वयंति जिन्माए रसं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुण्णमाहु दोसस्स हेउं अमणुण्णमाहु ।। ६३. रसेसु' जो गिद्धिमुवेई तिव्वं' अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे बडिसविभिन्नकाए मच्छे जहा आमिसभोगगिद्धे ॥ ६४. जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुइंतदोसेण सएण जंतू 'रसं न किंचि' अवरज्झई से ।। १. निच्चं (अ, बृ)। ६. रसस्स (अ, ऋ)। २. "वाए य (अ); वाए ण (सु); रागेण ७. निच्चं (अ)। (सुपा, बृपा)। ८. लोभागिद्धे (अ)। ३. अतित्त (बृ); अतित्ति (बृपा)। ६. निच्चं (अ, बृ)। ४. उ (अ)। १०. न किंचि रसं (अ)। ५. जीहा (उ, ऋ)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161