Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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२१३
बत्तीसइमं अग्झयणं (पमायट्ठाणं) ६५. एगतरत्ते रुइरे रसम्मि अतालिसे से कुणई पओसं ।
दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो।। ६६. रसाणुगासाणुगए य जोवे चराचरे हिंसइणेगरूवे ।
चित्तेहि ते परितावेइ बाले पीलेई अत्तगुरू किलिछे॥ ६७. रसाणवाएण' परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे ।
वए विओगे य कहिं सुहं से ? संभोगकाले य अतित्तिलाभे ॥ ६८. रसे अतित्ते य परिग्गहे य सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्टि ।
अतुट्टिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं ।। ६६. तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रसे अतित्तस्स परिग्गहे य.।
मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा तत्थावि दुवखा न विमुच्चई से ।। ७०. मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य पओगकाले य दुही दुरंते ।
एवं अदत्ताणि समाययंतो रसे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो । ७१. रसाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किचि ? ।
तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं ॥ ७२. एमेव रसम्मि गओ पओसं उवेइ दुक्खोहपरंपराओ ।
पदुटुचित्तो यो चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। ७३. रसे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण ।
न लिप्पई भवमझ वि संतो जलेण वा पोखरिणीपलासं ।। ७४. कायस्स फासं गहणं वयंति तं रागहेउं तु मणुण्णमाहु ।
तं दोसहेउं अमणुण्णमाहु समो य जो तेसु स वीयरागो ।। ७५. फासस्स कायं महणं वयंति कायस्स फासं गहणं वयंति ।
'रागस्स हेउं समणुण्णमाहु' 'दोसस्स हे अमणुण्णमाहु ।। ७६. फासेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्व अकालियं पावइ से विणासं ।
रागाउरे सोयजलावसन्ने गाहग्गहोए महिसे वरणे ॥ ७७ जे यावि दोसं समवेइ तिव्वं' तंसि खण से उ उवेइ दक्खं ।
सरण जंतु न किचि फासं अवरज्झई से।। ७८. एगतरत्ते रुइरंसि फासे अतालिसे से कुणई. पओसं ।
दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो।। ७६. फासाणुगासाणुगए य जीवे चराचरे हिसइणेगरूवे ।
चित्तेहि ते परितावेइ बाले पोलेइ अत्तगुरू किलिट्ठे ।। १. "वाय ए (अ); "वाए ण (सु); रागेण ५. तंदोस हेउस्स (अ)। (सुपा, वृपा)1
६. निच्च (अ)। २. अतित (बृ); अतित्ति (बृपा)।
७. व+अरण -- वरण । ३. उ (अ)।
८. निच्च (अ, बृ)। ४. तं राग हेउं तु मणुन्नमाहु (अ) ।
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