Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 143
________________ छत्तीसइमं अज्झयणं जीवाजीवविभत्ती उक्खेव-पर्व १. जोवाजोवविर्भात्त 'सुणेह में" एगमणा इओ। जं जाणिऊण समणे' सम्म जयइ संजमे ।। लोकालोक-पदं २. जीवा चेव अजीवा य एस लोए वियाहिए। ___ अजीवदेसमागासे अलोए से वियाहिए। ३. दव्वओ खेत्तओ चेव कालओ भावओ तहा । परूवणा तेसि भवे जीवाणमजीवाण य॥ ४. रूविणो चेवरूवी' य अजीवा दुविहा भवे । अरूवो दसहा वुत्ता रूविणो वि चउव्विहा ।। अवि-अजीव-पदं ५. धम्मस्थिकाए तद्देसे तप्पएसे य आहिए । अहम्मे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए । ६. आगासे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए। अद्धासमए चेव अरूवी दसहा भवे ।। ७. धम्माधम्मे य दोवेए लोगमित्ता वियाहिया ।। ___ लोगालोगे य आगासे समए समयखेत्तिए ।। ८. धम्माधम्मागासा तिन्नि वि एए अणाइया । अपज्जवसिया चेव सव्वद्धं तु वियाहिया ।। ६. 'समए वि संतइ पप्प एवमेव वियाहिए। आएसं पप्प साईए सपज्जवसिए वि य ।। रूवि-अजीव-पदं १०. खंधा य खंधदेसा य तप्पएसा तहेव य । परमाणुणो य बोद्धव्वा रूविणो य चउव्विहा ।। १. मे सुणेह (बू)। ४. दोएए (उ); दोवे य (ऋ); दो+अवेए== २. भिक्खू (उ, ऋ, ब); समणे (बपा)। दोवेए। ३. चेव+अरूवी --चेवरुवी। ५. एमेव संतई पप्प समए वि (बृपा) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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