Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 161
________________ उत्तरल्झयवाणि 261. बालमरणाणि बहुसो अकाममरणाणि चेव 'य बहूणि" / मरिहिति' ते वराया जिणवयणं जे न जाणंति // 262. बहुआगमविण्णाणा समाहिउप्पायगा' य गुणगाही / एएण कारणेणं अरिहा आलोयणं सोउं // 263. कंदप्पकोक्कुइयाई तह सीलसहावहासविगहाहि / विम्हावेतो य परं कंदप्पं भावणं कुणइ // 264. मंताजोगं काउं भूईकम्मं च जे पउंजंति / सायरसइड्डिहेउं अभिओगं भावणं कुणइ / / 265. नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघसाहूणं / माई अवण्णवाई किरिब सियं भावणं कुणइ / / 266. अणु बद्धरोसपसरो तह य निमित्तम्मि होइ पडिसेवि / एएहि कारणेहिं आसुरियं भावणं कुणइ / / 267, सत्थग्गहणं विसभक्खणं च जलणं च जलप्पवेसो य / अणायारभंडसेवा जम्मणमरणाणि बंघति / / निक्खेव-पदं 268. इइ पाउकरे बुद्धे नायए परिनिव्वुए / छत्तीसं उत्तरज्झाए भवसिद्धीयसंमए" // -त्ति बेमि // ग्रन्थ परिमाण अनुष्टप् श्लोक 2050 अक्षर 14 1. बहुयाणि (इ, उ, ऋ, स)। 2. मरहति (उ); मरिहंति (ऋ)। 3. मुपायगा (अ)। 4. कोक्कुयाइं (सु, ब)। 5. हसण (सु, बृ)। 6. मंतं" (अ)। 7. संवुडे (बृपा)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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