Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 115
________________ १६८ उत्तरज्झयणाणि ३७. कसायपच्चक्खाणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? कसायपच्चक्खाणेणं वीयरागभावं जणयइ । वीयरागभावपडिवन्ने वि य णं जीवे समसुहदुक्खे भवइ ॥ ३८. जोगपच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? जोगपच्चक्खाणेणं अजोगत्तं जणयइ | अजोगी' णं जीवे नवं कम्मं न बंधइ पुव्वबद्धं निज्जरेइ ॥ ३९. सरीरपच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? सरीपच्चक्खाणेणं सिद्धा इसयगुणत्तणं' निव्वत्तेइ । सिद्धाइसयगुणसंपन्ने य णं जीवे लोगग्गमुवगए परमसुही भवइ ॥ ४०. सहायपच्चक्खाणेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? सहायपच्चक्खाणं एगीभावं tures | एगो भावभूए वि' य णं जीवे एगग्गं भावेमाणे अप्पसद्दे अप्प अप्पकलहे अप्पकसाए अप्पतुमतुमे संजमबहुले संवरबहुले समाहिए यावि भवइ ॥ ४१. भत्तपच्चक्खाणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? भत्तपच्चक्खाणेणं अणेगाई भवसाई निरु भइ || ४२. सन्भावपच्चक्खाणेण भंते ! जीवे कि जणयइ ? सब्भावपच्चक्खाणेणं अनियट्टेि' जणयइ । अनि पिडिवन्ने" य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ, तं जहा --- वेयणिज्जं आउयं नाम गोयं । तओ' पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमंत करेइ ॥ ४३. पडिरूवयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ ? पडिरूवयाए णं लाघवियं जणयइ | लहुभूए णं' जीवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसत्थलिंगे विसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमत्ते सव्व पाणभूयजीवसत्तेसु वीससणिज्जरूवे अप्पडिलेहे" जिइंदिए विउलत वसमिइसमन्नागए यावि भवइ ॥ ४४. वेयावच्चेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? वेयावच्चेणं तित्थयरनामगोत्तं कम्मं निबंध || ४५. सव्वगुणसंपन्नयाए" णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? सव्वगुणसंपन्नयाए णं अपुणरावत्ति जणयइ । अपुणरावत्ति पत्तए य णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं नो भागी भवइ ॥ ४६. वीयरागयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? वीयरागयाए णं 'नेहाणुबंधणाणि तव्हा - १. अजोगीय ( ऋ) 1 २. समगुणत्तं (उ, ऋ)। ३. x (उ, ऋ । ४. X (उ, ऋ) 1 ५. × (बृ) । ६. निर्याट्ट (बृपा) । Jain Education International ७. नियट्टि (वृपा) । ८. ( उ, ऋ । ६. यणं (उ, ऋ ) 1 १०. अप्पपडिले (बृपा ) | ११. संपुण्णयाए ( अ, आ ) । १२. X (उ, ऋ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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