Book Title: Agam 20 Upang 09 Kalpvatansika Sutra Kappavadinsiyao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 148
________________ उबलित्त उवागच्छ उवलित्त (उपलिप्त ) ज ३३१८४५।५७ ३ ३ १३०, १३१.१३४ उपलेषण (उपलेपन) २०५१,५६,७१,७९ 1 उववज्ज ( उप -- पद् ) उववज्जड़ ग १७।६५ उबजेति ६४७ मे २६,६० मे २४,६६ ७० से ७२.७८ ११०.११०,११३ २१४९ यू १७१ उबवण्जति १६५०:१७९०, १२, २४,९५,११ से १०४ जिहि १०१४१ उ ३४१८६४०२६ उज्जित २१३५ से १३७ उज्जमाण ( उपपद्यमान ) प २०१६१ उज्जावे (उपपदविव्य) ६६२,९४ उवण ( उपपन्न) ज ७५६, २४, २१२ १६ २२/२१.१६२४१४२५ मे २०१४० २०१२, २०१४,०८३, १००, १६२, ४००८,२०५८ ३०, ४०, ४१ उष्ण ( उपपन्नक) १३०३६ १५०४२: ३४।१२ ३५।२३ उववणपुत्र ( उपपन्नपूर्व) ज ७।२१२ उवन्नग ( उपपन्नक) प १५१४६; ३४।१२ उवाय ( औपपातिक ) प ६ । ७३ उवदाएयय (उपपादवितव्य ) प ६२७३,७४ उवात ( उपपत ) प २०१६० चं १५. स. १।६।५१७|१ उववातगति (उपपातगति ) प १६।३७ उववातसभा (उपपातगभा) उ३|१४ (उपपासप २०१,२,४,५,७,८,१०,११. १३,१४,१६ से ३०,४६६१ ४,१० से २३,२७,४३,५६,६३,६१,८०१२,६५१,५३, ८१,१२,१००, १०२१०७ १०८२०१६१. ज २२७१ : ४। १४० ११,१६०६७१५७,६० उ २१२०,२२, ३३१६६ उपवायगति (उपपातगति) १६३१७,२४ से ३५ उवासभा (उपपातसभा) ज ४।१४० उ ३१८३; १२०,१६१ : ४।२४ उववास (उपवास) ज० २।१३५ Jain Education International उववेत (उपेत ) प १७।१३३ उववेय (उपेत ) प १७३१३४ २२१४,१८ उ ५।५ उवसंकम (उपक्रम) सू. १।१७ उपसंकमित्ता (उपगतम्) १०.१.२९ सू १।११:१४ उबसंत (उपशान्त) प १४२२०२ ६८६ ५५७. उ ३।३५ उवसंतकसाय (उपशान्तकपाय ) प ११००१०३. ११५, ११६ उवसंपज्जनागगति (उप) १६।३८४१ ८६१ उवसंपज्जिथं () (49 ज ७५५६५. १६२४४०५२ ू उवसग्ग ( उपसर्ग ) ज २२६४,६७६ ३१६२.११५, ११६,१२५ उवसम (उपगम ) ज ७ ११७,१२२/२. १०६४/२६६२ उवसाय (उपशामक) ५२३।१२१,१६२ उसोभय (उप) १४१३,२१,२६,२९, २३,४६ २४७,५७,१२०.१२७.१४७.१५०, १५, १६४३११७८११२४१२६.६३६२३ ५।३२,३८,७१७म उपसोमशण (उपमान) उसोभमान)६३६ For Private & Personal Use Only ७१२१३ उसोहि उप उदयय (उपाध्य) उहाण (उपधान) ज ४४१२ उवहि (उपधि ) प १४५ उहित (उप) सू २४ उपादाता (पातिक सू१०११३८ ~ उवागच्छ (उप आ गम्) बागच्छ ११६ २०१० ३१५.९.१२.१७, १८.४१ ३११११११८.१४१४१२२ www.jainelibrary.org

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