Book Title: Agam 20 Upang 09 Kalpvatansika Sutra Kappavadinsiyao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 268
________________ पाउभवित्ता-पादुम्भ ९८१ ५१७४ सू ११४ उ १।२४,३४,४०,४३,७४; ३३५७,६२,६५,६९,७२,७५,८१,१४३,१५६ पाउभवितए (प्रादुर्भवितुम्) ३११३ पाउया (पादु) ज ३१६,१७५; श२१ पाउस (प्रावृष) ज७१२६ १२११४ उ ५२५ पाओ (प्रारम्) - १ पाओवगध (प्रोपगा) उ ।११ पाओसिया (प्रादोपिकी) २२१४६,५६ पागड (प्रट) ज ३१३ च ११३ पागडभाव (कटभाव) ज २१६८ पागडिय (प्रकटित) २१४८,४६ पागढि (प्रापिन् ) ज ५॥५,४६ पागत (कृत) सू १६२२१३ पागलग (पा शासन) । २।५० ज ५११८ पागार कार) प२३०,३१,४१ ज ३११; ४।११४,११६, ७।१३३१२ पागारच्छाया (प्राकारच्छाया) सू ६१४ पाभारसंठिय (का संस्थिः ) सू १०।४३ पाड (पालय) पाडेइ उ ३१५१ पाडेंति ज ५११६ पाडण (वन) उ११५१,८६ पाडल (माटल) ज ३।१२,८८,५१५८ पाहता(टला)६ १३७५ पापुडाटलिपुट) ज ४।१०७ पाधिएकक (प्रक) ३१११८,४१२२ पउिसए ( विनुम) उ ११५१,७६.७७ पाडियंतिथ (प्रात्यधिक) ज २५७ पाउिवया (हिप) सू २०६३ पाडिहारिय (पानिहारिक) । ३६।६१ पाडेता (पातयित्वा) ज ५११६ उ ३१५१ पाढा (ठा) १९८८१४, १७।१३१ पा (प्राण) पश६४, ३६।६२,७७ ज २।१३१, ३११०८ से १११, २१२ पाण (प्राण, न) ज २१४११,२ पाण (पान) उ ३५०, ५५,१०१,११०,११४,१३४; पाणक्खय (प्राणक्षय) ज २।४३ पाणत (प्राणत) ११११३५ पाणम (प्र-+अन्) याणमंति ॥ ७१ से ४,६ पाणय (प्राणत) १२१४६,५८,५९,५९।२,६३; ३।१८३, ४१२५८ से २६०।६।३६,५६,६६; ७.१७:१५1८८,२११७०२८1८४;३३।१६; ३४११६,१८ ज ५१४६ उ २१२२ पाणय (पानक) उ ३।११४:४।२१ पाणयग (प्राणतज) ज ५१४६ पाणयव.सय (प्राणतावतंसक) प २५८ पाणाइवातकिरिया (प्राणातिपातक्रिया) प २२.१ पाणाइवाय (प्राणातिपात) प २२१६ से ११,२१ से २३ पाणाइवायकिरिया (प्राणातिपातक्रिया) प २२१६, ४६,४७,५०,५२,५७,५६ पाणाइवायविरत (प्राणातिपातविरत) प २२१८३, ___ ८४,६१ से १४,६६ पाणाइवायरमण (प्राणातिशतविरमण) प२२२७७ से ७६ पाणातिवालकिरिया (प्राणातितक्रिया) प २२१६ पाणि (प्राणिन ) ज ३.१७८ पाणि (पाणि) ज ५१५ उ ११११ से १३,३०,३२; २१७,४१८,५।१२,२५ पाणिग्गहण (पाणिग्रहण) उश१३ पाणिय (पानीय) उ ३।१३० पाणियग (पानीयक) ज २११३१ पाणिलेहा (पाणिरेखा) ज ११५ पाणी (पाणि) प ११४०।४ पात (प्रातस्) सू १०१५,१३६ पाती (पात्री) ज ३१११,५१५ पाद (पाद) १७.१११ ज ४११३ पादपीढ (पादपीठ) ज ३११७८ उ११११५ पादीणपडीणायया (प्राचीनााचीनायता) ज १११८ पाभ (पा-दुर् : भू) दुष्यति १३४।१६,२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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