Book Title: Agam 20 Upang 09 Kalpvatansika Sutra Kappavadinsiyao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 266
________________ पविजुयायित्ता-पसत्य ६७६ पविज्जुयायित्ता (प्रविद्युत्य) ज ३।११५ पविट्ठ (प्रविष्ट) प१५११११,१५१३६,४०,४२ ज ३।१०५,१७८.२२३;७।१७८ पविठित्ता (प्रविश्य) सू १०।१३६,१३१५,६ पवित्थर (प्र--वि- स्त) पवित्थरइ ज ३७६, ११६,११८ पविभत्त (प्रविभक्त) ज १११८,२०,४८,४११६७, २१५ पविभत्ति (प्रविभक्ति) सू १५:३७ पवियरिय (प्रविचरित) ज ४१३,२५ पवियारण (प्रविचारण) प १३१७ पविरल (प्रविरल) ज २६१३३; ५७ पिविस (प्र-विश) पविसं ति ज ३।१८३ पविसंत (प्रविशत्) च ४।२ सू १८१२; १९४२२१४ पविसमाण (प्रविशत्) ज ३१२०३११३,१६,२३ से २५,२८ से ३०,७२,७८,८४ सू १११२,१४, १६,१८,१६,२१.२४,२७,२६३, ६।११३१६ से १०,१४ से १६ पिवुच्च (प्र- वच्) पवुच्चइ सू ५१ पढ़ (प्रव्यूढ) ज ३।६७,१६१,४१२३,३५,३५,४२, ६५.७१,७३,७७,६०,६१,६४,१७४,१८३, १६५,२६२ पवेस (प्रवेश) ज ११६,३८,३।१२,४१,४६,५८, ६६,७४,७७,१०६,१४७,१६८,२१२,२१३; ४११०,११५,१२१,२१७ उ ५।४३ पव्व (पर्वन् ) प ११४८।४७,११।२५ ज ७।१०६ से ११० सू १०.१२७:१२।१६,१७,१३३१,२ पव्वइत्तए (प्रवजितुम) प २०१७,१८ उ ३१५०; ५॥३२ पवइय (प्रवजित) ज २६५.६७,६५,८७ उ २१६; ३३१३,२१,५०,५५,५८,६०,७६,७७,७६,११३, ११८, ५॥३८ पव्वंस (दे०) उ ५२२५ मिशिर ऋतु पव्वग (पर्वक) प १४३३११:११४१,११४८।४६ ___ ज २११४४ से १४६, ३।३१ पिन्वज (प्र-व्रज्) प जिहिइ उ ५४३ पन्वज्जा (प्रव्रज्या) उ ३११६६ पब्बत (पर्वत) प २।३२,३६,५०,५१,१७११११ ज ११४६;३।२२४ सू ५।११६२६ पव्वतराय (पर्वतराज) सू १६४२३ पवतिद (पर्वतेन्द्र) सू ॥१ पव्वय (पर्वक) ५ ११४२११ पन्वय (पर्वत) ६२३३,३५,४३,४४,१६।३०; १७४१०६ ज १११६,१६,२०,२३ से २५,२८, ३२,३३,४६।१,४७,४८,५१:२१३१,१०,११७, ११८,११६,१३१,१३३,३।१,६१,८१,१३०, १३१,१३५ से १३७,२२४;४।२३,३८,४८, ५७,५९,६०,६५,७१,७३,८४,६०,६१,६४, १०३,१०६,११०,१११,११३,११४,१४२, १६०,१६२,१६३,१६७,१६८,१७२,१७३, १७५,१७६,२००,२०५ से २०८,२१२ से २१६,२२०,२२१,२२५,२२६,२३४,२३५, २३७,२३६ से २४१,२५३,२५४,२५७,२५६, २६० से २६२९५१४४,४७,४८,४६,५५,६।६।१; ६।१०,१६,२३,२४,७१८ से १३,३१,३३,५५, ५८,६७ से ७२,६१,९२,१७१ सू ४१४,७,७११; ८.१,१८।५ उ ३३५५,५५,६ पिन्वय ( प्रव्रज) पव्वयाइ उ ३.११२ पव्वयामि उ ३११३;४।१४ पन्वयाहि उ ३।१०७ पव्वयग (पर्वतक) ज १११३ पन्वयबहुल (पर्वतबहुल) ज ११८ पवयराय (पर्वतराज) ज ७।५५ सू ५।१,७११ पवयसमिया (पर्वतसमिका) ज ११२३,२५,२८ पत्रयाउय (एवनायुप् ) ज ५॥१६ पव्यराहु (पर्वराहु) सू २०१३ पसंत (प्रशान्त ) ज २१६८,५७,२६ पसदिल (प्रशिथिल) १२१४६ पसष्णा (प्रसन्ना) उ११३४,४६,७४ पसत्त (प्रसक्त) ज ५१२६ पसत्थ (प्रशस्त ) प १७१३३,१३४,१३८,२३४५६, १०६,११६:३४।१३ ज ११३७२।१५:३।३,६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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