Book Title: Agam 20 Upang 09 Kalpvatansika Sutra Kappavadinsiyao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 346
________________ संलेहणा-सवकरप्पभा संलेहणा (संलेखना ) ज ३।२२४ उ २११२:३।१४, ८३, १२०, १५०, १६१, १६६५१२८,४३ संवच्छर ( संवत्सर ) प ४१६५, ६७ २३।७४, १८७ ज २४,६६,६६,७१२०, २५, २६,३७,१०३, १०४,११२/२,३,११३,११४,१२६ चं २१३५३ सू १।६।३; १६, १३, १४,१६, १७,२१,२४,२७,२१३ ; ६ | १ ; ६११; १०।१२४ से १२७,१२६१२,३,१३०,१३८ से १६१, ११।१ से ६; १२1१ से ६,१० से १३,१६ से २८,३०; १३२,२०१३ ३ ३ १२६,१३४ संवच्छरण (संवत्सरण) सू ११६१३ संच्छरय (सांवत्सरिक ज २२४३।२१२,२१३, २१६,७१११०,१२७ सु १०/१२२,१२३ (विकीर्ण ) प २०४१ ज ११३१ संविगण ( संविकीर्ण ) प २०३०, ३१ सविषद्ध (भविन ) ज ३१३१ संवुक्क (दे० ) प ११४६ संवुड (संवृत ) प ६२० से २३ सू २०१७ संजोग (संवृत योनिक ) प ६ । २५ संबुडवियड (संवृतविवृत ) प ६।२० से २३ संवुडवियडजोणिय (संवृतविवृतयोनिक ) प ह २५ संकल्प (संवर्तकल्प) उ ११३६ संग (संवर्तक) ज २११३१ संगवाय ( संवर्तकवात ) प ११२६ ज ५।५ √संवड्ढ (सं+वृध्) संवड्ढे इ उ ११५८ संवढे मि सकथा (कथा ) उ ३।५१११ उ १८३ संवढे हि उ १।५७ संवढमाण ( संवर्धमान ) उ ११५४ संवदिज्जमाण (संवध्यमान) उ ३ | ४६ संवत्त (संवृत्त) ज ३|१०६ संवद्धिय (संवद्धित ) ज ३१३५ संवर (शंकर) प ९६४ मृग की जाति संबर (संबर) प १।१०१।२ संवाह ( संवाह ) प १।७४ ज २।२२ संfafe संवृत्त (संवृत्त) ज ४११३ संवय (वृत्त) ज ३।२२२ संसयकरणी (संशयकरणी ) प ११।३७।२ Jain Education International संसत्त (संसक्त) उ ३११२० संसत्तविहारि ( मंसक्तविहारिन् ) उ३।१२० संसार (संसार) प २२६४,६४।१ ज २७० उ ३।११२ संसार अपरित (संसारापरीत) प १८१०६,१११ संसारत्य ( संसारस्य ) प ३११८३ संसारपरित (संसारपरीत ) प १८२१०६, १०८ संसारपारगामि (संसारपारगामिन् ) ज २७० संसारसमावण्ण (संसारसमापन्नक ) प ११०,१४, १५,४१ से ५२,१३८ संसारसमावण्णग (संसारसमापन्नक) प ११ ३९; २२८ संसिय (संश्रित) ज ३३८१ उ ३३५५ संहित ( संहित ) प १२४७३ संहिय ( संहित ) ज २११५ १०५६ सकसाई ( सकषायिन् ) प ३६८, १८३; १८२६४; २८।१३२ सकहा (दे० ) ज २।११३ सकाइ ( सकायिक ) प ३।५० से ५३,६०१८ २५; ३०,३१ सकिरिय (सक्रिय) प २२७,८ सकोरंट ( सकोरण्ट ) ज ३१६,१८,७७, ७८, १३, १८०,२२२ सक्क ( शक्य ) प ११४८१५७ ज २२६ १ सक्क (श) प २५०, ५१ ज ११३१; २२८६,६०, ६३,६५,६७,६६,१०१, १०३, १०५, १०७, १०६, १११,११३,११८, ३१११५, १२४, १२५; ४।१७२, २२२,२२३ १,२३५, २४०,२४३; ५।१८,२० से २३,२७ से २६,३६,४१,४३, ४५ से ५०,६१,६२,६५ से ६६,७२,७३ उ ३।१२३, १५० सक्करप्पभा (शर्कराप्रभा ) प १५३, २११,२०,२२; ३।१२,२२,२३,१८३,४७, ८, ६, ६ ११, ७४, ७५:१०११; २०१५१, ५४:२११६७ ; ३३१४, १६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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