Book Title: Agam 20 Upang 09 Kalpvatansika Sutra Kappavadinsiyao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 336
________________ विशुद्धत राग-वीइक्कत विसुद्ध तराग (विशुद्ध तरक) ११७।१०८ से १११ विशुद्धस्ततराग ( विशुद्ध लेश्यातरक ) प १७१७ विसुद्ध वण्णतरग (विशुद्ध तरक ) प १७१६, १७ विसेस (विशेष ) प १|१|४, २२६४११८, १२२३१; १५२६, ३०१७३०,१४६ ज १।१३,३० ३३,३६,२।४५,१४५ ३।३२,४१२,२५ सू २ २४१४, ७, १५१५ से ७१६६८; २२/१३ विसेसाहिय ( विशेषाधिक ) प २६४३११ से हैं, २४ से ३२, ३७ से १२०, १२२ से १२५, १२७, १४१ से १४३, १५६ से १७०,१७४ से १८३, ६१२३,८१५, ७, ६, ११:६१२, १६, २५; १०/३ से ५,२६ से २६,११७६, ६०; १५ १३,१६, २६ से २८,३१,३३,१५।५८।१,१५१६४; १७/५६ से ६६,७१ से ७६,७८ से ८३,१४४ से १४६ ; २०६४; २१ १०४, १०५ ; २२/१०१:२८।४१, ४४, ७०, ३४१२५, ३६।३५ से ४१,४८,४६, ५१,८१ ज ११७,२०,४/४५, ५७,६२,१८,११०,१४३,२१३,२३४,२४१; ७।१४,१६,७३ से ७५,६३,१६७,२०७ ३ १११४,२७,१८१३७११६१० / दिसोह (वि + शोधय ) विसहिहित ३ । ११५ विस्स (शिव) ज ७।१३०, १८६४ विस्संभर ( विश्वम्भर ) प १७६ विस्तदेय (विश्वदेवता ) १०१२ विस्सुत ( विश्रुत) ज ३।३५ विस्सु (विश्रुत) ज ३१७७,१०६, १२९, १६७ दिहं (दे० ) प ११४८४६ विहन (ग) १३७ २२६८, १०१ ४ २७; ५२८ fares ( वृहस्पति ) ज ७ १०४ बिहर (विन है ) विहरइ प २५० से ५३ ११५,४५,२१७०६१,३२,२०,२३, ३३, ८२,८४,१५३, १७१,१८२,१६१,२१८,२१६, २२४; ४१५६,५१६ उ ११२, २७, ३६ ; ४११५९ विहरति प २२० से २७,३० से Jain Education International १०४६ ३७,३० से ४२,४६, ४८ से ५२,५४,५.५, ५७ से ५६ ज १३१३,३०,३३,२८३, १२०:४२, ११३, ५११, ३, ८ से १३,६८,७५६,५६ सू १६१२४ उ ३५० : ५२६ विहरति प २३२,३३,३५,३६,४३ से ४५, ४८, ५१ ५३ से ५६ ज २७२ ३ । १२६५१८ से १३ सू २०१७ विहरसि उ ३।८१ विहरामि उ १७१ ३।३६ विहराहि ज ३३१८५,२०६ विहरिस्संति ज १।१३४,१४६ विहरेज्जा सू २०१७ उ५/३६ विहरमाण ( विहरत् ) ज २१७१ उ १।२,२० विहतिए ( विहर्तुम् ) ज ७ १८४, १८५ सु १८।२२ उ १२६५,३१५० विहरिय ( विहृत ) उ ३१५५ विहव ( विभव) ज ५४३ विहाड (वि + घटय् ) विहाडेइ ज ३३६०, १५७ विहाडेहि ज ३८३,१५४ विहाडिय ( विघटित ) ज ३।६० विहाडेला (विघटा ) ज ३१८३ विहाण ( विधान ) प १।२०१२, ११२०, २३.२६,२६, ४८, ६८ विहाणग्गण ( विधानमार्गण ) १२८२६.६, ५२, ५५ विहायगति ( विहायोगति ) ५ १६ १७,३८,५५ विहाय गतिणाम ( विहान् ) प २३०३८, ५.६,११६,११७,११६,१२८, १३२ विहार ( बिहार ) ज २२७१ विहि (विधि) प २४५ ; २१।१।१ ज ३२४/२, सु १६१२२ विहिष्णु ( विधिज्ञ ) ज ३१३२ विहूण ( विहीन ) प १०।१४१५ ज ४१६४,८६,१३६, २०८ विहसण ( विभूषण ) ज ४ । १४०।१ ats (वीचि ) ज ३।१५१ वीseकंत (व्यतिक्रान्त) ज २१५१,५४,७१,८८, ८६, १२१,१२६,१३०, १४६, १५४, १६०,१६३; ३।२२५ उ ११५३, ७८३११२६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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