Book Title: Agam 20 Upang 09 Kalpvatansika Sutra Kappavadinsiyao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 330
________________ विउलमइ विग्गह चिलम ( विपुलमति ) ज २८० विउ (विकृ) विजय ज ५१४१,४६,६०, ६६ ३६२ उव्वति प ३४।१६ २१ से २३ ज २१०२,१०६, १०८३१११५,१६२,१६४, १५, १७, १८५१५५, ५७ विउवह २११०१,१०५,५१३ विउब्वाहि ज ५१२८ उह ज ३११९१ पित्त (विकिद्विप्राप्त) सू १३।१७ विजवण्या (विकरण ) उ ३४११ से ३ विन्वणा (विकरणा ) उ ३१७ विनमाण ( विकुर्माण ) सू २०१२ (म्) ज ७।१८३ १८।२१ विजवित्ता ( विकृत्य ) प ३४।१६,२१ से २३ उ ३११२३ विउत्रिय (त्रिकृत ) प २१४१ विवेत्ता (वि) ज ३।१६१ विउसमण ( व्यवशमन ) २०७ विझगिरि (विन्ध्यगिरि) उ३।१२५ विट ( वृन्त ) प ११४८४६ विणिज्ज (बृंहणीय ) प १७ १३४ V विकंप (वि + कम्पू ) किं चं ३।२ सू ११७१२ विपत्ता ( विकम्प्य ) सू ११२४ विकंपमाण ( विकम्पमान) सू ११२४ विकप्प (विकल्प) ज ३१३२ विकप्पिय ( विकलित ) ज ३११०९ विकल ( विकल ) ज २११३३ विकिष्ण (विकीर्ण ) ज ७।१७८ afera ( विकृत भूत) ज ५।५७ विरकर (विकिरणकर) ज ३।२२३ विकिरिज्माण (विकीर्यमाण) ज ४११०७ विकुस ( विकुश ) ज २२८६ विक्कत ( विक्रांत) ज ३।१०३ विक्कम (विक्रम) ज ३।३७ १९७८ १११ विश्वंभ ( विष्कम्भ ) प १२७४ २५०,५६,६४; २१८४,८६,८७,९० से ६३, ३६१५६,६६, Jain Education International १०४३ ७०,७४,८१ ज ११७ से १०,१२,१४,१६,१८, २०,२३ से २५,२८,३२,३५,३७,३८, ४०, ४२, ४३,४८,५१,२१६,१४१ से १४५, ३६५, १६, १५९,१६०.१६७ ४ १ ३, ६, ७, ९, १०, १२, १४, २४,२५,३१,३२,३६,३० से ४१,४३,४५,४७, ४८,५६,५२ से ५५, ५७,५६,६२,६४,६६ से ६६,७२,७४,७५,७६,७८,८०,८१,८४ से ८६, ८,८६,६१ से २३, १५, १६, १८, १०२, १०३, १०८, ११०,११४ से ११६,११८ से १२७, १३२,१३६,१४०,१४३, १४५ से १४७, १५४ से १५६,१६२,१६५,१६७ ११,१६६,१७२, १७४,१७६,१७८,१८३,२००,२०१,२०५, २१३,२१५ से २१६.२२१,२२६,२३४,२४० से २४२, २४५,२४८ २१३५,७१७, १४ से १६, ६६,७३ से ७८,६०,६३,६४,१७७,२०७ चं ३१२ सु१७/२:१।१४,२६,२७,१८१६ से १३; १६/४,७,१०,१४.१८,२०,२१११,३०, ३१, ३४, ३५, ३७ विries (विष्कम्भसु ि ) प १२ १२, १६, २७, ३१३६ से ३८ विषय ( विक्षत ) ज २११३३ विवखुर (दे० ) प ७११७८ विग ( वृक ) ज २१३६ विगत ( विगत ) प १३८४ विगतजोइ (विगतज्योतिस् ) मु १४११०३१५१८ से १३ fare ( विकृत) ज २१३३ विगयमिस्सिया ( विगतमिति ) ११३६ विधि (विकलेन्द्रिय) १९१८३ से ८५; १५।१०३:२० १३५; २२८ २:२८।११५.१२७, १३८, ३११६।१, ३४।१४:३५।११२,३५७; ३६।५६ विगदिय ( विकलेन्द्रिय ) प ११५२ विगोवइत्ता ( विगोप्य ) ज २१६४ विगह ( विग्रह ) प ३६ ६०, ६७ से ६६,७१,७५ ज ५३४४ उ ३३६१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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