Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 128
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवसेसाणविसभाणंजाव उववायसभाए सयणिजं (हरओपा०)अभिसेअसभाए बहु आभिसेक्के भंडे हरओय, अलंकारिअसभाए बहु अलंकारिअभंडे चिट्ठइ, ववसायसभासु पुत्थयरयणा, गंदा पुक्खरिणीओ, बलिपेढा, सव्वरयणामया दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं जोयणं बाहल्लेणं जाव उववाओ संकप्पो अभिसेअ विहूसणा य ववसाओ। अच्चणिअ सुधम्मगमो जहा य परियारणा इद्धी ॥४२॥ जावइयंमि पमाणमि हुँति जमगाओणीलवंताओतावइअमन्तरं खलु जमगदहाणं दहाणंच॥४३॥८९कहिं णं भन्ते! उत्तरकुराए णीलवन्तहहे णामं दहे पं०?, गो०! जमगाणं दक्खिणिल्लाओ चरिमन्ताओ अट्ठसए चोत्तीसे चत्तारि असत्तभाए जोअणस्स अबाहाए सीआए महाणईए बहुमज्झदेसभाए एत्थ णंणीलवन्तहहे गाणं दहे पं० दाहिणउत्तरायए पाईणपडीणविच्छिण्णे जहेव पउमड़हे तहेव वण्णओ णाअव्वो णाणत्तं दोहिं पउमवरवेइआहिं दोहि य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ते, णीलवन्ते णाम णागकुमारे देवे सेसं तं चेव णेअ, णीलवन्तद्दहस्स पुव्वावरे पासे दस २ जोअणाई अबाहाए एत्थ णं वीसं कंचणगपव्वया पं० एगं जोयणसयं उद्धंउच्चत्तेणं मूलभिं जोयणसयं पण्णत्तरि जोयणाई मॉमि। उवरितले कंच्णा पण्णासं जोयणा हुंति॥४४॥ मूलंमि तिणि सोले सत्तत्तीसाई दुण्णि मझंमि।अट्ठावण्णं च सयं उवतिले परिरओ होइ॥४५॥ पढमित्थ नीलवन्तो बितिओ उत्तरकुरु मुणेअव्वो।चंदबहोत्थ तइओ एरावणमालवन्तो य॥४६॥ एवं वण्णओ अट्ठो पमाणं पलिओवमद्विइआ देवा ॥९०॥ कहिं णं भन्ते! उत्तरकुराए कुराए जम्बूपेढे णामं पेढे पं०?, गो०!णीलवन्तस्स वासहरपव्व्यस्स दक्खिणेणं मन्दरस्स उत्तरेणंमालवन्तस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चस्थिमेणं सीआए || ॥श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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