Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 175
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजयस्सजावसव्वओ समन्ता आहावेंति परिधावेति । १२२।तएणंसे अच्चुइंदे सपरिवारे सामि तेणं महया २ अभिसेएणं अभिसिंचई| त्ता करयलपरिग्गहिअंजाव मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ त्ता ताहिं इटाहिं जाव जयजयसई पउंजति जाव पम्हलसुकुमालाए सुरभीए गन्धकासाईए गायाई लूहेइ त्ता एवं जाव कप्परुक्खगंपिव अलंकियविभूसिअं करेइ त्ता जाव पट्टविहिं| उवदंसेइ त्ता अच्छेहिं सण्हेहिं श्ययामएहिं अच्छरसातण्डुलेहिं भगवओ सामिस्स पुरओ अट्ठभंगलगे आलिहइ, तं०-दथ्यण भद्दासण वद्धमाण वरकलस मच्छ सिरिवच्छ।। सोथिअणन्दावत्ता लिहिआ अट्ठमंगला ॥८०॥ लिहिऊण करेइ उव्यारं, किं ते ? पाडलमल्लिअचंपगासोगपुत्राअचूय-मंजरिणवमालिअबउलतिलयकणवीरकुंदकुज्जगकोरंटपत्त दमणगवरसुरभिगन्धगंधियस्स कयग्गहगहियकरयलपब्भविष्यमुक्कस्स दसद्धवृण्णरस कुसुमणियरस्स तत्थ चित्तं जण्णुस्सेहप्पमाणमित्तं ओहिनिकर करेत्ता चंदध्यभरयणवरवइरवेरुलियविमलदंडं कंचणमणिश्यणभत्तिचित्तं कालागुरुपवरकुंदुरुक्कधूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवटि विणिम्मुअंत वेरुलियमयं कडुच्छुयं पगहित्तु पयएणं धुवं दाऊण जिणवरिंदस्स सत्तट्ठ पयाई ओसरित्ता दसंगुलियं अंजलिं करिय मत्थयंमि पयओ) अट्ठसयविसुद्धगन्थजुत्तेहिं महावित्तेहिं अपुणरुतेहिं अत्थजुत्तेहिं संथुणइ त्ता वामं जाणुं अंचेइ त्ता जाव करयलपरिग्गहियं० मत्थए अंजलिं कट्ट एवं क्यासी णमोऽत्थु ते सिद्धबुद्धणीरयसमणसामाहियसमत्तसमजोगिसल्लगत्तणणिब्भयणीरागदोसणिम्ममणिस्संगणीसल्लमाणमूरणगुणरयणसीलसागरमणंतमध्यमेय भवियधम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी णमोऽत्थु ते अहओत्तिकठ्ठ एवं वंदइ णमंसइ त्ता ॥श्री जंबूद्वीप प्रजप्ति सूत्र पू. सागरजी म. संशोधित || For Private And Personal Use Only

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