Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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| होइ णक्खत्ते ॥८५॥ससि समग पुण्णमासिं जोएती विसमचारिणक्खत्ता । कडुओ बहूदओ या तमाह संवच्छरं चंदं ॥८६॥ विसमं| पवालिणो परिणमंति अणुउसु दिति पुष्फफलं वासनसम्मं वासइ तमाह संवच्छरं कम्म् ॥८७॥ पुढविदगाणंच रसं पुष्फफलाणंच दे आइच्चो।अप्पेणवि वासेणं सम्म निष्फज्जए सस्सं ॥४८॥आइच्चतेयतविया खणलवदिवसा उॐ परिणमंतिपूरइ णिण्णयथले तमाह अभिवद्धियं जाण ॥८९॥ से तं णक्खत्तसंवच्छरे, सणिसमवच्छरे णं भंते ! कतिविहे पं०?, गो०! अट्ठावीसइविहे पं० २०'अभिई सवण धणिवा सयभिसया दो य होति भद्दवया रेवइ अस्सिणि भरणी कत्तिय तह रोहिणी चेव ॥९०॥ जाव उत्तराओ आसाढाओ जंवा सणिच्चरे महग्गरे तीसाए संवच्छरेहिं सव्वं णक्खत्तमंडलं समाणेइ, सेत्तं सणिच्चरसंवच्छरे १५२। एगमेगस्सणं भंते ! संवच्छरस्स कइ मासा पं०?, गो० दुवालस मासा पं०, तेसिंणं दुविहाणामधेजा पं० २०-लोइआ लोउत्तरिआ य, तत्थ लोइआ णामा इमे, तं०-सावणे भद्दवए जाव आसाढे, लोउत्तरिआ णामा इमे, तं०- अभिणंदिए पइठे य, विजए पीइवद्धणे ! सेअंसे य सिवे चेव, सिसिरे य सहेमवं ॥९१॥णवमे वसंतमासे दसमे कुसुमसंभवे ! एक्कारसे निदाहे य, वणविरोही य बारसे ॥१२॥एगमेगस्सणं भंते ! मासस्स कति पक्खा पं० गो०!, दो पक्खा पं० २०-बहुलपक्खे य सुकिल्लपक्खे य एगमेगस्सणं भंते! पक्खस्स, कइ दिवसा पं०?, गो० पण्णरस दिवसा पं० २०-पडिवादिवसे, जाव पण्णरसी दिवसे एत्तेसिंणं भंते ! पण्णरसण्हं दिवसाणं कई णामधेजा पं०?. गो०! पण्णरस नामधेजा पं० ०-'पुव्वंगे सिद्धमणोरमेय तत्तो मणोरहे चेव । जसभद्दे य जसधरे छटे सव्वकामसमिद्धे य | श्री जंबूदीप प्रज्ञप्ति सूत्र
पू. सागरजी म. संशोधित ||
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