Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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चउद्दसीए दिवा विट्ठीराओ सउणी अमावासाए दिवा चउप्पयंराओणागंसुक्कपक्खस्सपाडिवए दिवा किंत्थुग्धं करणं भवइ॥१५४ किमाइआ णं भंते! संवच्छरा किमाइआ अयणा किमाइआ उॐ किमाइआ मासा किमाइआ पक्खा किमाइआ अहोरत्ता किमाइआ मुहुत्ता किमाइआ करणा किमाइआ णक्खत्तां पं०?, गो०! चंदाइआ संवच्छरा दक्खिणाइया अयणा पाउसाइआ उऊ सावणाइआ मासा बहुलाइआपक्खा दिवसाइआ अहोरत्तारोहाइआ मुहुत्ता बवाइया करणाअभिजिआइजाणक्वत्तापं० समणाउसो! पंचसंवच्छरिए णं भंते! जुगे केवइआ अयणा केवइया उऊ एवं मासा पक्खाअहोरत्ता केवइआ मुहत्ता पं०?, गो०! पंचसंवच्छरिए णं जुगे दस अयणा तीसं उऊ सट्टी मासा एगे वीसुत्तरे पक्खसए अट्ठारसतीसा अहोरत्तसया चउप्पण्णं महत्तसहस्सा णव सया पं०॥१५५॥ जोगा देवय तारग्ग गोत्त संठाण चंदरविजोगा। कुल पुण्णिम अवमंसा य सण्णिवाए यणेता य ॥१००॥ कति णं भंते! णक्खत्ता पं०?, गो०! अट्ठावीसं णक्खत्ता पं० २०-अभिई सवणो धणिट्ठा सयभिसया पुवभवया उत्तरभहव्या रेवई अस्सिणी भरणी कत्तिआ रोहिणी मिअसिर अदा पुणव्वसू पूसो अस्सेसा मघा पुव्वफग्गुणी उत्तरफग्गुणी हत्थो चित्ता साई विसाहा अणुराहा जेट्ठा मूलो पुव्वासादा उत्तरासाढ॥ १५६॥ एतेसिं णं भंते! अट्ठावीसाए णक्खत्ताएं कयरे णक्खत्ता जे णं सया चन्दस्स दाहिणेणं जोयं जोएंति कयरे णक्खत्ता जेणं सया चंदस्स उत्तरेणं० क्यरेणखत्ता जेणं चंदस्स दाहिणेणवि उत्तरेणवि पमबंपि० क्यरेणक्खत्ता जेणं चंदस्स दाहिणेणंपि पमहंपिक कयरे णखत्ता जे शंसया चन्दस्स पमहं०?, गो०! एतेसिंणं अहावीसाए णखत्ताणं तत्त जेते णक्खता | ॥श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र॥
| पू. सागरजी म. संशोधित
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