Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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महयाहयणट्ट जाव भुंजमाणा सुहलेसा मन्दलेसा मन्दातवलेसा चित्तंतरलेसा अण्णोण्णसमोगाढाहिं लेसाहिं कूडाविव ठाणठिआ सव्वओ समन्ता ते पएसे ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पभासेन्ति, तेसिं णं भंते! देवाणं जाहे इंदे चुए भवइ से कहमियाणिं पकरेन्ति जाव जह० एवं समयं उक्को० छम्मासा ॥ १४२ ॥ कइ णं भंते! चंदमण्डला पं?, गो० ! पण्णरस चंदमण्डला पं०, जंबुद्दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया चंदमण्डला पं०?, गो० ! जंबुद्दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहित्ता पंच चंदमण्डला पं०, लवणे णं भंते! पुच्छा, गो० ! लवणे णं समुद्दे तिण्णि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता एत्थ णं दस चंदमंडला पं०, एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे लवणे य समुद्दे पण्णरस चंदमंडला भवतीतिभक्खायं ॥ १४३ ॥ सव्वब्यंतराओ णं भंते! चंदमंडलाओ केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरए चंदमंडले पं०?, गो० ! पंचदसुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरए चंदमंडले पं० ॥ १४४ ॥ चंदमंडलस्स णं भंते! चंदमंडलस्स य के वइयं अबाहाए अंतरे पं० ?, गो० ! पणतीसं २ जोयणाई तीसं च एगसट्टिभाए जोयणस्स एगसद्विभागं च सत्तहा छेता चत्तारि चुण्णिया भाए चंदमंडलस्स २ य अबाहाए अंतरे पं० ॥ १४५ ॥ चंदमंडले णं भंते! केवइयं आयामविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं केवइयं बाहल्लेणं पं०?, गो० ! छप्पण्णं एगसद्विभाए जोयणस्स आयामविक्खंभेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं अट्ठावीसं च एगसट्टिभाए जोयणस्स बाहल्लेणं ॥ १४६ ॥ जंबुद्दीवे मंदरस्स पव्वयस्स के वइयं अबाहाए सव्वब्यंतरं चन्दमंडलं पं० ?, गो० ! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठय | वीसे जोअणसए अबाहाए सव्वमंतरए चन्दमंडले पं०, जंबुद्दीवे मंदरस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतराणंतरे चंदमंजले पं०?, गो० ! पू. सागरजी म. संशोधित
॥ श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रं ॥
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