Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 192
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org | जंबुद्दीवे सूरिया केवइयं खेत्तं उद्धं तवयंति अहे तिरियं च ?, गो० ! एगं जोयणसयं उद्धं तवयंति अट्ठारसजोयणसयाई अहे तवयंति || सीयालीसं जोयणसहस्साइं दोण्णि य तेवढे जोयणसए एगवीसं च सद्विभाए जोयणस्स तिरियं तवयंति ॥ १४० ॥ अंतो णं भंते! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिमसूरियगहगणणक्खत्ततारारूवा ते णं भंते! देवा किं उद्धोववण्णगा कप्पोववण्णगा विमाणोववण्णगा चारोववण्णगा चारट्ठिईया गइरइया गइसमावण्णगा?, गो० ! अंतो णं माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिमसूरियजावतारास्वा ते णं देवा उद्धोववण्णगा णो कम्पोववण्णगा विमाणोववण्णगा चारोववण्णगा णो चारट्ठिइया गइरइया गइसमावण्णगा, उद्धीमुहकलंबुयापुण्फसंठाणसंठिएहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावखेत्तेहिं, साहस्सियाहिं सयसाहस्सियाहिं वेउव्वियाहिं बाहिराहिं परिसाहिं महयाहयणट्टगीयवाइयतंतीतलतालतुडियघणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणा महया उकिट्ठिसीहणायबोलकलकलरवेणं अच्छं पव्वयरायं पयाहिणावत्तमण्डलचारं मेरुं अणुपरियद्वंति ॥ १४१ ॥ तेसिं णं भंते! देवाणं जाहे इंदे चुए भवइ से कह मियाणिं पकरेंति?, गो० ! ताहे चत्तारिपंच सामाणिआ देवा तं ठाणं उवसंपजित्ताणं विहरंति जाव तत्थ अण्णे इंदे उववण्णे भवइ, इंदट्ठाणे णं भंते! केवइअं कालं उववाएणं विरहिए पं०?, गो० ! जह० एवं समयं उक्को० छम्मासे उववाएणं विरहिए पं०, बहिया णं भंते! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिमजावतारारुवा तं चेव णेअव्वं णाणत्तं विभाणोववण्णगा णो चारोववण्णगा चारठिईआ णो गइरइआ णो गइसमावण्णगा, पक्किट्ठगसंगणसंठिएहिं जोअणसयसाहस्सिएहिं तावखित्तेहिं, सयसाहस्सिआहिं वेउव्विआहिं बाहिराहिं परिसाहिं ॥ श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित १८३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only

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