Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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देवसाहस्सीणं दाहिणपच्चत्थिमेणं बाहिरपरिसाए सोलसण्हं देवसाहस्सीणं पच्चत्थिमेणं सत्तण्हं अणिआहिवईण, तए णं तस्स|| सीहासणस्स चउद्दिसिं चउण्हं चउरासीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं एवमाई विभासिअव्वं सूरिआ भगमेणं जाव पच्चप्पिणन्ति ।११७ तए णं से सक्के जाव हट्ठहिए दिव्यं जिणेदाभिगमणजुग्गंसव्वालंकारविभूसिअंउत्तरवेविअंरुवं विउव्वइ त्ता अहिं अगमहिसीहिं सपरिवाराहिणहाणीएणगन्धव्वाणीएणयसद्धिंतं विमाणं अणुप्पयाहिणीकोमाणा पुब्बिल्लेणं तिसोवाणेणं दुरूहइत्ता जाव सीहासणंसि पुरत्याभिमुहे सण्णिसण्णे, एवं चेव सामाणिआवि उत्तरेणंतिसोवाणेणं दुरूहित्ता पत्तेअं२ पुव्वण्णत्थेसु भहासणेसु णिसीअंति, अवसेसा देवा देवीओअदाहिणिल्लेणं दुरुहित्ता तहेव जावणिसीअंति, तए णं तस्ससक्कस्सतसि विमाणंसि दुरूढस्स इमे अट्ठमंगलगा/ पुरओ अहाणुपुव्वीए संपडिआ, तयणंतरं पुण्णकलसभिंगारं दिव्वा य छत्तपडागा सचामरा य दंसारइअआलोअदरिसणिज्जा वाउद्धअविजयवेजयन्ती असमूसिया गगणतलमणुलिहंती पुरओ०, त्यणन्तरं छत्तभिंगारं०, तयणंतरं वइरामयवट्टलट्ठसंठिअसुसिलिट्ठपरिघटुमदुसुपइटिए विसिटे अणेगवरपञ्चवण्णकुडभीसहस्सपरिमण्डिआभिरामे वाउद्धअविजयवेजयन्तीपडागाछत्ताइच्छत्तकलिए तुंगे गयणतलमणुलिहंतसिहरे जोअणसहस्समूसिए महइमहालए महिंदज्झए पुरओ०, तयणन्तरं च णं सरूवनेवत्थपरिअच्छिअवेसा/ सव्वालंकारविभूसिआ पञ्च् अणिआहिवइणो०, त्यणन्तरं च णं बहवे आभिओगिआ देवा य देवीओ असएहिं सएहिं रूवेहिं जाव णिओगेहिं सकं देविंदं देवरायं पुरओ अमम्गओय अपासओ अहा०, तयणन्तरं च णं बहवे सोहम्मकप्पवासी देवा य देवीओ अ || ॥श्री जंबूद्वीप प्रनप्ति सूत्र
| पू. सागरजी म. संशोधित
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