Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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सलेसेत्ति पुच्छा, गो० सलेसे दुविधे पं० २०- अणादीए वा अपज्जवसिए अणाइए वा सपज्जवसिते, कण्हलेसे० ति कालतो || केवचिरं होइ?, गो० जह० अंतो० उक्को० तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तममहियाई, नीललेसे णं भंते! नीललेसेत्ति० पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उको० दस सागरोवमाई पलितोवमासंखिज्जइभागमभहियाई, काउलेसे •णं पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उक्कोतिणि सागरोवमाइं पलितोवमासंखिजतिभागमभहियाई, तेउलेसे गं० पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उक्को० दो सागरोवमाई पलितोवमासंखिज्जतिभागमभहियाई, पम्हलेसे णं० पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उक्को० दस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तममहियाई, सुक्कलेसे णं पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उक्को० तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तमब्भहियाई, अलेसे गं० पुच्छा, गो०! सादीए अपज्जवसिते दारं ८ १२४० सम्मट्टिी णं भंते! सम्मद्दिछित्ति काल?, गो०! सम्मट्ठिी दुविहे पं० २०- सादीए वा अपज्जवसिते सादीए वा सपजवसिते, तत्थ णं जे से सादीए सपज्जवसिते से जह० अंतो० उक्को० छाविट्ठी सागरोवमाइं साइरेगाई, मिच्छादिट्ठी णं भंते! पुच्छा, गो०! मिच्छादिट्ठी तिविधे पं० २०-अणाइए वा अपज्जवसिए अणादीए वा सपज्जवसिए सादीए वा सपज्जवसिए, तत्थ णं जे से सादीए सपज्जवसिते से जह० अंतो० उक्को० अणंतं कालं अणंताओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालतो खेत्ततो अवड्ढ पोग्गलपरियट्टे देसूणं, सम्मामिच्छादिट्ठी णं पुच्छा, गो०! जह० अंतो० उक्को० अंतो० । दारं ९। २४१। णाणी णं भंते! णाणित्ति काल?, गो०! णाणी दुविधे पं० २०- सातीते वा अपज्जवसिते साइए वा सपज्जवसिते, तत्थ णं जे से सादीए सपजवसिते ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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