Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 303
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अणि?त्ताते अकंतत्ताए अपियत्ताए असुभत्ताए अमणुण्णत्ताए अमणामत्ताते अणिच्छियत्ताते अ(प्र० अण) भिझियत्ताए अहत्ताते || नो उद्धताए दुक्खत्ताते नो सुहत्ताते एतेसिं भुजो २ परिणमंति?३०४। असुरकुमारा णं भंते! आहारट्ठी?, हंता आहारही, एवं जहा नेरझ्याणं तहा असुरकुमाराणवि भाणितव्वं जाव तेसिं भुजो २ परिणमंति, तत्थ णंजे से आभोगनिव्वत्तिते से णं जह० चउत्थभत्तस्स उक्को० सातिरेगवाससहस्सस्स आहारटे समुप्पज्जइ, ओसण्णं कारणं पडुच्च वण्णतो हालिद्दसुकिल्लातिं गंधतो सुब्भिगंधातिं रसतो अंबिलमहरातिं फासओ मज्यलहुयनिधुण्हातिं, तेसिं पोराणे वण्णगुणे जाव फासिंदियत्ताते जाव मणामत्ताते इच्छियत्ताते भि (प्र० अभि) झियत्ताते उद्धत्ताते नो अहत्ताए सुहत्ताए नो दुहत्ताए एतेसिं भुजो २ परिणमंति, सेसं जहा नेरइयाणं, एवं जाव थणियकुमाराणं णव आभोगनिव्वत्तिते उक्को० दिवसपुहुत्तस्स आहारट्टे समुप्पज्जति ३०५। पुढवीकाइया णं भंते! आहारही?, हंता आहारही पुढवीकाइया णं भंते! केवतिकालस्स आहारटे समुपज्जति?, गो०! अणुसमयमविरहिते आहारट्टे समुपजइ, पुढवीकाइया णं भंते! किमाहारमाहारेंति? एवं जहा नेरइयाणं जाव ताई कतिदिसिं आहारेंति?, गो०! निव्वाधातेणं छद्दिसिं वाघायं पडुच्च सिय तिदिसि सि चदिसिं सिय पंचदिसिं नवरं ओसन कारणं न भण्णति, वण्णओ कालनीललोहितहालिहसुकिल्लातिं गंधतो सुब्मिगंधदुब्भिगंधातिरसतो तित्तकडुयकसायअंबिलमुहाराई फासतो कक्खडम्उयगुरुयलहुयसीतउण्ह (प्र० सिण) गिद्धलुक्खातिं, तेसिं पोराणे वण्णगुणे सेसं जहा नेरझ्याणं जाव आहच्च नीससंति, पुढवीकाइया० गिण्हंति तेसिं भंते! पोग्गलाणं सियालंसि ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥ | ३१२ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345