Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 318
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ओही पं०?, गो०! दुविहा ओही पं० २०- भवपच्चइया य खओवसमिया य, दोण्हं भवपच्चइया, तं०-देवाण य नेइयाण य, दोण्हं खओवसमिया, तं० मणूसाणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाण यो ३१८॥ नेरइया णं भंते! केवइयं! खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति?, गो०! जह० अद्धगाउयं उक्को० चत्तारि गाउयाई ओहिणा जाणंति पासंति, रयणप्यभापुढवीनेरइया णं भंते! केवतियं खेत्तं?, गो०! जह० अधुवाई गाउयाई उक्को० चत्तारि गाउयाई, सकरप्यभापुढवीनेरइया जह० तिण्णि गा० उक्को० अधुवाई गाउ०, वालुयप्पभापुढवीनेरइया जह० अद्धाइजाई गाउ० उक्को० तिण्णि गाउयाई, पंकय्यभापुढ़वीनेरइया जह० दोहण्णि गाउ० उक्को० अद्धाइजाई गाउ० धूमप्यभापु० ने२० जह० दिवद्धं गाउयं उक्को० दो गाउ०, तमापु० जह० गाउयं उक्को० दिवड्डे गाउयं अधेसत्तमाए पुच्छा, गो०! जह० अद्धं गाउयं उक्को० गाउयं ओहिणा जाणंति पासंति, असुरकुमारा णं भंते! ओहिणा केवइयं०?, गो०! जह० पणवीसं जोअणाई उक्को० असंखेजे दीवसमुद्दे, नागकुमारा णं जह० पणवीसं जोअणाई उको० असंखेजे दीवसमुद्दे, एवं जाव थणियकुमारा, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! केवइयं खेत्तं?, गो०! जह० अंगुलस्स असंखेजतिभागं उक्को० असंखेजे दीवसमुद्दे, मणूसा णं भंते! ओहिणा केवतितं०? गो०! जह० अंगुलस्स असंखेजतिभागं उक्को० असंखेजाई अलोए लोयप्पमाणमेत्ताई खंडाई ओहिणा जा० ५०, वाणमंत। जहा नागकुमारा, जोइसिया णं भंते! केवतितं० ओ०?, गो० जह० संखेजे दीवसमुद्दे, उक्को० संखेने दीवसमुद्दे, सोहम्मगदेवा णं भंते! केवइयं खेत्तं? गो०! जह० अंगुलस्स असंखेजतिभागं ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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