Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 342
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुणरवि जम्मुष्पत्ती ण भवति, से तेणद्वेणं गो०! एवं वुच्चइ ते णं तत्थ सिद्धा भवंति असरीरा जीवघणा दंसणाणोवउत्ता णिट्ठियहाणीरया णीरेयणा वितिमिरा विसुद्धा सासयभणागतद्धं कालं चिटुंतित्ति निच्छिण्णसव्वदुक्खा जाइजरामरणबंधणविमुक्का। सासयमव्वाबाहं चिटुंति सुही सुहं पत्ता।२३१॥३५२। समुग्धायपयं ३६॥ श्रीप्रज्ञापनोपांगं सूत्रं संपूर्ण ॥ प्रभु महावीरस्वामीनी पट्टपरंपरानुसार कोटीगण-वैरी शाखा-चान्द्रकुल प्रचंड प्रतिभा संपन्न, वादी विजेता परमोपास्य पू. मुनि श्री.झवेरसागरजी म.सा. शिष्य बहुश्रुतोपासक, सैलाना नरेश प्रतिबोधक, देवसूर तपागच्छ, समाचारी संरक्षक, आगमोध्धारक पूज्यपाद आचार्यदेवेश् श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी महाराजा शिष्य प्रौढ प्रतापी-सिध्धचक्र आराधक समाज संस्थापक पूज्यपाद आचार्य श्री चन्द्रसागर सूरीश्वरजी म. सा. शिष्य चारित्र चूडामणी, हास्य विजेतामालवोध्धारक महोपाध्याय श्री धर्मसागरजी म.सा. शिष्य आगम विशारद, नमस्कार महामंत्र समाराधक पूज्यपाद पंन्यास प्रवर श्री अभयसागरजी म. सा. शिष्य शासन प्रभावक, नीडर वक्ता पू. आ. श्री अशोकसागर सूरिजी म.सा. शिष्य परमात्म भक्ति रसभूत पू. आ. श्री जिनचन्द्रसागर सू.म.सा. लघुगुरुभ्राता प्रवचन प्रभावक पू.आ. श्री हेमचन्द्रसागर म.सा. शिष्य पू. गणी श्री पूर्णचन्द्रसागरजी म. सा. आ आगमिक सूत्र अंगे सं. २०५८/५९/६० वर्ष दरम्यान संपादन कार्य माटे महेनत करी प्रकाशन दिने पू. सागरजी म. संस्थापित प्रकाशन कार्यवाहक जैनानंद पुस्तकालय, सुरत द्वारा प्रकाशित करेल छे... ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥] | ३५१ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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