Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 319
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उक्को० अहे जाव इमीसे रयणप्यभाए हिडिल्ले चरमंते तिरियं जाव असंखिजे दीवसमुद्दे उ8 जाव सगाई विमाणाई, एवं| ईसाणगदेवावि, सणंकुमारावि एवं चेव, नवरं जाव अहे दोच्चाए सक्करप्पभाए पुढवीए हिडिल्ले चरमंते, एवं माहिंददेवावि, बंभलोयलंतगदेवा तच्चाए पुढवीए हिडिल्ले चरमंते, महासुक्कसहस्सारतदेवा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढ़वीए हेडिल्ले चरमंते, आणयपाणय-आरणच्चुयदेवा अहे जाव पंचमाए धूमप्यभाए हेडिल्ले चमते, हेद्विममझिमगेवेजगदेवा अधे जाव छट्ठाए तमाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरमंते उवरिमगेविजगदेवा णं भंते! केवतियं खेत्तं०?, गो०! जह० अंगुलस्स असंखेजतिभागं उक्को० अधे सत्तमाए हेडिल्ले च० तिरियं जाव असंखेजे दीवसमुद्दे उड्ढे जाव सयाई विमाणाई, अणुत्तरोववाइयदेवा णं भंते! केवइयं खेत्तं ओ० जा० पा०?, गो०! संभिन्न लोगनालिं ओ० जा० पा०३१९। नेरइयाणं भंते! ओही किंसंठिए पं०?, गो०! तप्पागारसंठिए पं०, असुरकुमाराणं पुच्छा, गो०! पल्लगसंठित्ते, एवं जाव थणियकुमारणं, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गो०! णाणासंठाणसं०, एवं मणूसाणवि एवं, वाणभंतराणं पुच्छा, गो०! पडहगसं०, जोतिसियाणं पुच्छा?, गो०! झल्लरिसंठाणसं० पं०, सोहभ्मगदेवाणं पुच्छा, गो० उड्ढमुयंगागारसंठिए पं०, एवं जाव अच्चुयदेवाणं, गेवेज्जगदेवाणं पुच्छा, गो०! पुष्पचंगेरिसंठिए पं०, अणुत्तरोववाइयाणं पुच्छा, गो०! जवनालियासंठिते ओही पं० १३२० नेरइयाणं भंते! ओहिस्स किं अंतो बाहिं गो०! अंतो नो | बाहिं, एवं जाव थणियकुमारा, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गो०! नो अंतो बाहिं, मणूसाणं पुच्छा, गो०! अंतोवि बाहिंपि, ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥ | ३२८ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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