Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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||पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा य जहा नेरइया, वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा असुरकुमारा ३२२। नेरइया णं भंते! आहारे || किं आभोगनिव्वत्तिते अणाभोगनि०?, गो०! आभोगनिव्वत्तिएविअणा०, एवं असुरकुमाराणं जाव वेमाणियाणं,णवरं एगिंदियाणं नो आभोगनिव्वत्तिए अणाभोग०, नेरइया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गिण्हंति ते किं जाणंति पा० आहारेंति उदाह न याणंति न पासंति आहारेंति?, गो०! न याणंति न पासंति आहारेंति, एवं जाव तेइंदिया, चरिंदियाणं पुच्छा, गो०! अत्यंगतिया न याणंति पासंति आहा० अत्गइया न याणंति न पासंति आहा० पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गो०! अत्थे० जा० पा० आहा० अत्थे० जा० न पा० आहा० अत्थे० न याति पासंति आहा० अत्थे० न जा० न पा० आ०, एवं जाव मणुस्साणवि, वाणमंतरजोइसिया जहा नेरइया, वेमाणियाणं पुच्छा, गो०! अत्थे० जा० पा० आ० अत्थे० न जा० न पा० आ०, से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ वेमाणिया अत्थे० जा० पा० आ० अत्थे० न जा० नपा० आ०?, गो०! वेमाणिया दुविहा पं० ०माइमिच्छादिहिउववनगा य अमाइसम्मदिटिउव०, एवं जहा इंदियउद्देसए पढमे भणितं तहा भाणितव्वं जाव से एएणटेणं गो०! | एवं वुच्चति०, नेरइया णं भंते! केवतिया अझवसाणा पं०?, गो०! असंखेजा अझवसाणा पं०, ते णं भंते! किं पसत्था अपसत्था?, गो०! पसत्थावि अप०, एवं जाव वेमाणियाणं, नेरइया णं भंते! किंसम्मत्ताभिगमी मिच्छत्ताभिगमी सम्मामिच्छत्ताभिगमी?, गो०! सम्मत्ताभिगमीवि मिच्छत्ताभिगमीविसम्मामिच्छत्ताभिगमीवि, एवं जाव वेमाणियावि, नवरं एगिंदियविगलिंदिया णो सम्मत्ताभिगमी
॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम्।
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पू. सागरजी म. संशोधित
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