Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 310
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | आहारए सिय अणाहारए, एवं मणूसेवि, पुहुत्तेणं तियभंगो, असंजते पुच्छा, सिय आहारए सिय अणाहारए, पुहुत्तेणं जीवेगिंदियवज्जो || तियभंगो, संजतासंजते णं जीवे०?, पंचिंदियतिरिक्खजोणिते मणूसे य, एते एगत्तेणवि पुहुत्तेणवि आहारगा नो अा०, नोसंजतनोअसंजतनोसंजतासंजते जाव सिद्ध य एते एगत्तेण पोहत्तेणवि नो आहा० अणा० दारं ६। सकसाई णं भंते! जीवे किं आहारए अणाo?, गो०! सिय आहा० सिय अणाहारते, एवं जाव वेमाणिए, पुहुत्तेणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो, कोहकसाईसु जीवादीसु एवं चेव नवरं देवेसु छच्भंगा, माणकसाईसु जीवादिसु एवं चेव नवरं देवेसु छब्भंगा, भायाकसाईसु य देवनेरइएसु छब्भंगा अवसेसाणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो, लोहकसाईसु नेरइएसु छब्भंगा अवसेसेसु जीवगिदियवज्जो तियभंगो, अक्साई जहा णोसण्णीणोअसण्णी दारं ७।३११॥णाणी जहा सम्मट्ठिी, आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी य बेइंदियतेइंदियचउरिदिएसु छब्भंगा अवसेसेसु जीवादिओ तियभंगो जेसिं अस्थि, ओहिणाणी पंचिंदियतिरिक्खजोणिया आहारगाणो अणाहारगा अवसेसेसु जीवादिओ तियभंगो जेसिं अस्थि ओहिनाणं, मणपज्जवनाणी जीवा मणूसा य एगत्तेणवि पुहुत्तेणवि आहा० णो अणाहारगा, केवलनाणी जहा नोसण्णीनोअसण्णी दारं ७ अण्णाणी मतिअण्णाणी सुयअण्णाणी जीवेगिंदियवजो तियभंगो, विभंगनाणी पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा य आहारगा णो अणा० अवसेसेसु जीवादियो तियभंगो। दारं ८ सजोगीसु जीवेगिदियवज्जो तियभंगो, मणजोगी वइजोगी जहा सम्मामिच्छादिट्ठी, नवरं वइजोगी विगलिंदियाणवि, कायजोगीसु जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो, ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम्।। पू. सागरजी म. संशोधित|| For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345