Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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| आहारए सिय अणाहारए, एवं मणूसेवि, पुहुत्तेणं तियभंगो, असंजते पुच्छा, सिय आहारए सिय अणाहारए, पुहुत्तेणं जीवेगिंदियवज्जो || तियभंगो, संजतासंजते णं जीवे०?, पंचिंदियतिरिक्खजोणिते मणूसे य, एते एगत्तेणवि पुहुत्तेणवि आहारगा नो अा०, नोसंजतनोअसंजतनोसंजतासंजते जाव सिद्ध य एते एगत्तेण पोहत्तेणवि नो आहा० अणा० दारं ६। सकसाई णं भंते! जीवे किं आहारए अणाo?, गो०! सिय आहा० सिय अणाहारते, एवं जाव वेमाणिए, पुहुत्तेणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो, कोहकसाईसु जीवादीसु एवं चेव नवरं देवेसु छच्भंगा, माणकसाईसु जीवादिसु एवं चेव नवरं देवेसु छब्भंगा, भायाकसाईसु य देवनेरइएसु छब्भंगा अवसेसाणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो, लोहकसाईसु नेरइएसु छब्भंगा अवसेसेसु जीवगिदियवज्जो तियभंगो, अक्साई जहा णोसण्णीणोअसण्णी दारं ७।३११॥णाणी जहा सम्मट्ठिी, आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी य बेइंदियतेइंदियचउरिदिएसु छब्भंगा अवसेसेसु जीवादिओ तियभंगो जेसिं अस्थि, ओहिणाणी पंचिंदियतिरिक्खजोणिया आहारगाणो अणाहारगा अवसेसेसु जीवादिओ तियभंगो जेसिं अस्थि ओहिनाणं, मणपज्जवनाणी जीवा मणूसा य एगत्तेणवि पुहुत्तेणवि आहा० णो अणाहारगा, केवलनाणी जहा नोसण्णीनोअसण्णी दारं ७ अण्णाणी मतिअण्णाणी सुयअण्णाणी जीवेगिंदियवजो तियभंगो, विभंगनाणी पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा य आहारगा णो अणा० अवसेसेसु जीवादियो तियभंगो। दारं ८ सजोगीसु जीवेगिदियवज्जो तियभंगो, मणजोगी वइजोगी जहा सम्मामिच्छादिट्ठी, नवरं वइजोगी विगलिंदियाणवि, कायजोगीसु जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो, ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम्।।
पू. सागरजी म. संशोधित||
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