Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 253
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरीरोगाहणा पं०?, गो०! ज० अंगुलस्स असंखेजतिभागं उछो० सातिरेगं जोअणसहस्सं अपज्जतगाणं जह० उक्को० अंगुलस्स || असंखेजतिभागं, पजत्तगाणं जह० अंगुलस्स असं० उक्को० सातिरेगं जोयणसहस्सं, बादराणं जह० अंगुलस्स असं० उक्को० जोअणसहस्सं सातिरेगं. पजत्ताणवि एवं चेव, अपजत्ताणं जह० उक्को० अंगुलस्स असं०, सुहमाणं पजत्तापजत्ताण य तिण्हवि जह० उक्को० अंगुलस्स असं०, बेइंदियओरा० भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पं०? गो०! जह० अंगुलस्स असं० उक्को बारस जोअणाई,एवं सव्वत्थवि अपज्जत्तयाणं अंगुलस्स असंखे० जहणणेणवि उक्कोसेणवि, पजत्तगाणं जहेव ओरालियस्स ओहियस्स, एवं तेइंदियाणं तिण्णि गाउयाई चरिदियाणं चत्तारि गाउयाई पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं उक्को० जोयणसहस्सं, एवं संमुच्छिमाणं, गब्भवतियाणवि एवं चेव नवओ भेदो भाणियव्वो, एवं जलयराणवि जोयणसहस्सं, नवओ भेदो, थलयराणवि णव भेदा उको० छ गाउयाई, पजत्तगाणवि एवं चेव, संमुच्छिमाणं पज्जतगाण य उक्को० गाउयपुहुत्तं, गब्भवतियाणं उक्को० छ गाउयाई पजताण य, ओहियचउपयपजत्तगब्भवतियपज्जत्तयाणवि उको० छ गाउयाई, संमुच्छिमाणं पजत्ताण य गाउयपुहुत्तं उको०, एवं उरपरिसप्पाणवि, ओहियगब्भवतियपज्जतगाणं जोयणसहस्सं, संभुच्छिमाणं पजत्ताण य जोयणपुहत्तं, भुयपरिसप्पाणं ओहियगब्भववंतियाणवि उक्को० गाउयपुहत्त, समुच्छिमाणं धणुपुहुत्तं, खहयराणं ओहियगब्भवतियाणं संभुच्छिमाण यतिण्हवि उको० घणुपुत्तं, इमाओ संगहणिगाहाओ जोयणसहस्स छग्गाउयाई तत्तो य् जोअणसहस्सी गाउयपुहुत्त भुयए धणुहपुहुत्तं च ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित | २६२ For Private And Personal Use Only

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